सपा-सुभासपा ने महेंद्र चौहान को किया रसड़ा सीट पर शिफ्ट !

गाजीपुर (सुजीत सिंह प्रिंस)। खुद के माफिक चुनावी माहौल बनाने के लिए सुभासपा अध्यक्ष और पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर हर जतन कर रहे हैं। योगी के मंत्री अनिल राजभर से खतरा भांप वाराणसी की शिवपुर विधानसभा सीट छोड़कर अब गाजीपुर की जहूराबाद सीट पर आ गए हैं और चुनाव मैदान में उतरने से पहले वहां अपने गठबंधन में संभावित हर कंटक को हटाने में जुट गए हैं। इसीक्रम में वह इस सीट पर सपा के प्रबल दावेदार रहे महेंद्र चौहान को अपने खाते की बलिया की रसड़ा सीट पर शिफ्ट कर दिए हैं जहां वह सुभासपा के चुनाव निशान छड़ी पर लड़ेंगे। वैसे रसड़ा सीट सुभासपा के लिए छोड़े जाने की अधिकृत घोषणा गठबंधन की ओर से अभी नहीं हुई है लेकिन शुक्रवार को महेंद्र चौहान ने सुभासपा की सदस्यता केंद्रीय कार्यालय रसड़ा में ले भी ली। यह सदस्यता पार्टी के प्रदेश प्रमुख महासचिव रजनीश श्रीवास्तव ने दी।
महेंद्र चौहान की सेटिंग को लेकर खुद सपा मुखिया अखिलेश यादव भी फिक्रमंद रहे हैं। महेंद्र चौहान पिछले चुनाव में सपा के टिकट पर जहूराबाद से लड़े थे। तब सुभासपा का गठबंधन भाजपा से था और सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर खुद उनसे मुकाबिल थे। बावजूद महेंद्र चौहान कुल 64 हजार 574 वोट बटोर लिए थे। मतलब इस बार महेंद्र चौहान का ही टिकट काटकर अखिलेश यादव ने जहूराबाद सीट अपने यार ओमप्रकाश राजभर के लिए छोड़ी है। तब महेंद्र चौहान और उनकी बिरादरी बिदकने का खतरा था। इसके लिए अखिलेश यादव सुभासपा संग गठबंधन के बाद से ही महेंद्र चौहान को कुछ ज्यादा ही पुचकारना शुरू कर दिए थे। पिछले साल नवंबर में गाजीपुर आई उनकी विजय यात्रा के दौरान उसका अंदाजा मिला था। फिर पार्टी मुख्यालय लखनऊ में भी कई बार पार्टीजन अखिलेश यादव की ओर से महेंद्र चौहान को मिलते भाव पर गौर करते रहे।
जहूराबाद क्षेत्र की राजनीति पर नजर रखने वालों की मानी जाए तो अखिलेश यादव को बखूबी एहसास था कि जहूराबाद के चौहानों की नाराजगी महंगी पड़ सकती थी। 2007 के चुनाव में सपा शिवपूजन चौहान का टिकट काटकर डॉ.सानंद सिंह को लड़ाई थी। तब बगावत कर शिवपूजन चौहान निर्दल उतर गए थे और 20 हजार 982 वोट बटोर कर डॉ.सानंद सिंह की हार की इबारत लिख दिए थे। ऐसे में अगर महेंद्र चौहान को चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिलता तो उनकी बिरादरी गठबंधन का खेल बिगाड़ सकती थी।
…तब राम इकबाल सिंह का क्या होगा
गाजीपुर। रसड़ा सीट पर शिफ्टिंग से महेंद्र चौहान की बात बनने की गुंजाइश तो बन गई है लेकिन पूर्व विधायक रामइकबाल सिंह का तो बहुत कुछ जियान हो जाएगा। वह भाजपा छोड़कर सपा में आए थे कि अपने जानी राजनीतिक दुश्मन बसपा विधायक उमाशंकर सिंह से हिसाब किताब चुकता करेंगे लेकिन महेंद्र चौहान के चलते उनकी इस उम्मीद पर पानी फिर गया लगता है। रसड़ा सीट पर उमाशंकर सिंह पिछले दो चुनावों से रामइकबाल सिंह को पटकनी देते आ रहे हैं। हालांकि उसके पहले एक वक्त था कि उमाशंकर सिंह रामइकबाल सिंह के कारखास हुआ करते थे। तब राम इकबाल सिंह साल 2002 के विधानसभा चुनाव में बलिया की तत्कालीन चिलकहर सीट से भाजपा विधायक चुने गए थे।