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अब भाजपाइयों का ‘पॉवर सेंटर’ कहां

गाजीपुर। प्रदेश में योगी सरकार फिर से वापसी कर ली है। इसकी खुशी गाजीपुर के भाजपाइयों में तो है लेकिन गाजीपुर की सभी सात विधानसभा सीटों में एक पर भी अपनी पार्टी के विधायक के न चुने जाने की टीस इन्हें खूब साल रही है।

इस बात का अंदाजा सोशल मीडिया पर आ रही उनकी पोस्ट, टिप्पणी से मिल रहा है। कई वरिष्ठ भाजपाजनों की पोस्ट में तो वह अपनी व्यथा जताते हुए लिखे हैं कि यह गाजीपुर का दुर्भाग्य है कि केंद्र में पार्टी की सरकार है मगर गाजापुर में पार्टी का सांसद नहीं है और अब प्रदेश में पार्टी की फिर से सरकार होगी लेकिन गाजीपुर में पार्टी का एक भी विधायक नहीं होगा।

भाजपाइयों की इस बेचैनी को इस संदर्भ में भी समझा जा सकता है कि उनके लिए अब ‘पॉवर सेंटर’ कहां रहेगा। पिछली सरकार में तीन ‘देवियां’ थीं।  मतलब मुहम्मदाबाद विधायक अलका राय, सदर विधायक डॉ. संगीता बलवंत तथा जमानियां विधायक सुनीता सिंह और यह तीनों अपने-अपने क्षेत्र से इस बार चुनाव हार चुकी हैं। इनके अलावा एमएलसी विशाल सिंह चंचल थे लेकिन उनका कार्यकाल भी इसी सात मार्च को खत्म हो चुका है।

इस दशा में भाजपाइयों के लिए यह सवाल बेचैन कर रहा है कि वह अपने इलाके के लोगों की बात प्रशासन, शासन तक किसके जरिये पहुंचाएंगे। किससे पैरवी कराएंगे। हालांकि पार्टी का नेतृत्व समूह इसका विकल्प बन सकता है लेकिन यह नेतृत्व समूह उनका कितना ‘लोड’लेगा इसका अंदाजा लगभग हर कार्यकर्ता को पहले से है। बल्कि कार्यकर्ताओं का अनुभव तो यही है कि अव्वल तो यह कि जरूरत पर जिला पदाधिकारी पार्टी कार्यालय में मिलते नहीं। अगर मिल भी गए तो सीधे मुंह बात नहीं करते जबकि तीनों देवियां उनके काम की पैरवी भले न कर पाती थीं लेकिन कम से कम उनकी बात तो सुन ही लेती थीं।

भाजपाइयों को यह बात और अफसोस में डाल रही है कि उनके लोगों कि सपाइयों से ज्यादा ठनती रहती है। खासकर ग्रामीण इलाकों में तो यही स्थिति रहती है। थाना, ब्लॉक, तहसील से जुड़े मामले ज्यादा ही रहते हैं और सपाइयों की प्रदेश में भले सरकार नहीं बन पाई लेकिन गाजीपुर की सभी सात सीटों पर उनके अपने विधायकों के चुने जाने से उनका मनोबल बढ़ गया है।

उधर भाजपा से जुड़ा प्रबुद्ध वर्ग भी इस बार गाजीपुर में विधानसभा चुनाव के परिणाम से कम चिंतित नहीं है। इनका मानना है लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार से गाजीपुर में विकास की रुकी गति के फिर से शुरू होने की रही सही गुंजाइश भी लगभग खत्म हो गई। वैसे भी विपक्षी पार्टी के विधायकों से उम्मीद बेमानी है।

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