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सिबगतुल्लाह और अंबिका की सपा में वापसी तय!

गाजीपुर। पूर्व विधायक सिबगतुल्लाह अंसारी और पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी की समाजवादी पार्टी में वापसी लगभग तय है। तय नहीं है तो बस इसकी औपचारिक तिथि की घोषणा। वैसे यह माना जा रहा है कि इसी माह की कोई वह तिथि हो सकती है।  बताया यह भी  जा रहा है कि पार्टी मुखिया अखिलेश यादव की मौजूदगी में इन दोनों नेताओं की वापसी होगी।

दोनों नेता पिछला विधानसभा चुनाव बसपा के टिकट पर अपनी परंपरागत सीटों से लड़े थे। हालांकि बसपा का टिकट वह तब लिए थे जब सपा उन्हें पूरी तरह नकार दी थी। अखिलेश यादव के हाथ आए पार्टी नेतृत्व का वह शुरुआती दौर था। उनकी प्राथमिकता पार्टी में अपनी पकड़ मजबूत करने और पार्टी की छवि सुधारने की थी।

जहां तक सिबगतुल्लाह अंसारी की सपा में जाने की बात है तो बिल्कुल हालिया घटनाक्रम भी इसकी पुष्टि करते हैं। बीते 19 अगस्त को बसपा की प्रबुद्ध वर्ग विचार संगोष्ठी आयोजित थी। उसके मुख्यवक्ता बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतिशचंद्र मिश्र थे लेकिन सिबगतुल्लाह अंसारी उसमें नदारद थे जबकि उनके भाई सांसद अफजाल अंसारी मौजूद थे। इत्तेफाक कि ऐन उसी दिन एक खबरिया चैनल ने यह खबर चला दी थी कि सिबगतुल्लाह अंसारी सपा में शामिल होंगे। बावजूद सिबगतुल्लाह अंसारी की ओर से उस खबर का आज तक खंडन नहीं आया।

बताया जा रहा है कि सपा में वापसी को लेकर पार्टी के दूसरे नेता सिबगतुल्लाह अंसारी से कम उत्सुक, उत्साही नहीं हैं। उनमें पूर्व मंत्री ओमप्रकाश सिंह और विधायक डॉ.बीरेंद्र यादव का नाम खासतौर पर लिया जा रहा है। जाहिर है इसमें इन्हें अपना फायदा दिख रहा है। अगले चुनाव में सिबगतुल्लाह अंसारी के जरिये मुस्लिम वोटरों के उनसे जुड़ने की गुंजाइश जो बन जाएगी।

उधर पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी की तो सपा में वापसी की बात उसी दिन पक्की मान ली गई थी जब उनके बेटे आनंद चौधरी को पार्टी बलिया जिला पंचायत चेययरमैन का उम्मीदवार घोषित की थी। उस चुनाव में ‘उल्टी हवा’ के बावजूद अपने बेटे को जीता कर अंबिका चौधरी ने सपा मुखिया अखिलेश यादव को अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास भी करा दिया था।

…और इनके लिए ‘अनलकी’ रही बसपा

वैसे देखा जाए तो पूर्व विधायक सिबगतुल्लाह अंसारी और पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी के लिए बसपा अनलकी ही साबित हुई। सिबगतुल्लाह अंसारी पहली बार 2007 के विधानसभा चुनाव में गाजीपुर की मुहम्मदाबाद सीट से सपा के टिकट पर विधायक चुने गए थे। उसके बाद 2012 के चुनाव में अपने भाई अफजाल अंसारी की अगुवाई वाले कौमी एकता दल (कौएद) से दूसरी बार विधानसभा में पहुंचे थे और जब 2017 में हैट्रिक लगाने की बारी आई तो बसपा का झंडा-डंडा लेकर चुनाव मैदान में उतरे मगर लाख कोशिश के बाद भी पीछे छूट  गए। उधर अंबिका चौधरी के पहली बार वह बलिया की फेफना (कोपाचीट) सीट से 1993 में सपा के टिकट पर विधायक बने थे। उसके बाद 1996, 2002 तथा 2007 के चुनाव में भी सपा उम्मीदवार की हैसियत से ही अपनी जीत का क्रम जारी रखे लेकिन 2012 के चुनाव में सपा के वोट बैंक में बंटवारे के कारण उनका वह अजय किला ढह गया। राजनीतिक हालातों के कारण 2017 के चुनाव में बसपा के बैनर तले लड़े। पूरा जोर लगाए लेकिन फिर विधानसभा में पहुंचने की उनकी साध जहां की तहां रह गई।

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