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सुभासपा अध्ययक्ष को सबक सिखाने का कैबिनेट मंत्री का ‘प्लान’!

गाजीपुर। योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर को सबक सिखाने के ‘प्लान’ में हैं! शनिवार को हुए राजनीतिक घटनाक्रम में पूर्व विधायक कालीचरण राजभर का सपा छोड़कर भाजपा में आना कैबिनेट मंत्री के उसी प्लान से जोड़ा जा रहा है।

कालीचरण राजभर ने भाजपा के प्रदेश मुख्यालय लखनऊ में सदस्यता ग्रहण की। उस मौके पर कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर खासतौर से मौजूद थे। उस मौके पर अपने संबोधन में उन्होंने सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर का नाम लिए बगैर कहा- पूरा राजभर समाज भाजपा के साथ आकर ऐसे लोगों को राजनीति से बेदखल करने का काम करेगा जो पिछले 18 वर्ष से पार्टी बनाकर लोगों को धोखा देने का काम कर रहे हैं।

भाजपा सूत्रों की मानी जाए तो कालीचरण राजभर को पार्टी में लाने के अहम सूत्रधार अनिल राजभर ही हैं। सपा का सुभासपा से समझौता होने के बाद ही अनिल राजभर ने कालीचरण राजभर से संपर्क साधा था। एक लिहाज से देखा जाए तो इसमें अनिल राजभर और कालीचरण राजभर की राजनीतिक गरज मेल खाई।

जहूराबाद के मौजूदा विधायक सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर और अनिल राजभर आपस में धुर राजनीतिक विरोधी हैं। दोनों नेता एक दूसरे पर जुबानी प्रहार करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। ओमप्रकाश राजभर के अलग होने के बाद भाजपा नेतृत्व राजभर वोट बैंक पर पकड़ बनाए रखने के लिए ही अनिल राजभर को प्रमोट किया। उन्हें योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया। फिर ओमप्रकाश राजभर के निर्वाचन क्षेत्र जहूराबाद में राजनीति करने के लिए फ्रीहैंड किया गया। इस दशा में अनिल राजभर को एक ऐसे चेहरे की दरकार थी। जो, ओमप्रकाश राजभर को ‘धकियाने’ का दमखम रखता हो। जो, जहूराबाद के राजभर वोट बैंक में दखल रखता हो। जो, जहूराबाद के हर गांव-गली में अपनी खुद की पहचान रखता हो। इस रूप में अनिल राजभर के लिए पूर्व विधायक कालीचरण सबसे फिट चेहरा दिखे।

उधर पूर्व विधायक कालीचरण राजभर भी सपा-सुभासपा में समझौते के बाद खुद सपा में रहते जहूराबाद विधानसभा सीट पर अपने लिए संभावनाएं लगभग खत्म ही मान चुके थे जबकि वह इसी उम्मीद से बसपा छोड़ कर सपा का दामन थामे थे कि वहां जहूराबाद सीट से लड़ने का उन्हें मौका मिल सकता है। अब जबकि कालीचरण राजभर भाजपा में चले आए हैं तो यह माना जा रहा है कि उन्हें जहूराबाद सीट से टिकट का भरोसा मिला होगा। तभी उन्होंने इतना बड़ा राजनीतिक कदम उठाया है।

कालीचरण राजभर 2002 के विधानसभा चुनाव में पहली बार बसपा के टिकट पर जहूराबाद से विधायक चुने गए थे। फिर 2007 के चुनाव में भी वह इसी सीट से दोबारा विधानसभा में पहुंचे थे लेकिन 2012 के चुनाव में हैट्रिक लगाने के उनके ख्वाब को सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने तोड़ दिया था। तब ओमप्रकाश राजभर अंसारी बंधुओं की अगुवाई वाले कौएद के साथ थे। वह कुल 48 हजार 865 वोट बटोर लिए थे। कालीचरण राजभर 56 हजार 534 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रह गए थे और सपा की शादाब फातमा पूरे 67 हजार 12 वोट के साथ विधायक चुनी गई थीं। फिर बारी आई 2017 के चुनाव की। बसपा चौथी बार कालीचरण राजभर पर ही दांव लगाई लेकिन सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर को भाजपा के साथ होने का लाभ मिला। 86 हजार 583 वोट बटोरकर पहली बार वह विधानभा में पहुंचे। कालीचरण राजभर 68 हजार 502 वोट लेकर दूसरे स्थान पर ही रह गए थे। तब इस गणित से देखा जाए तो कालीचरण राजभर को भी अपनी लगातार दो चुनावी हारों के लिए जिम्मेदार सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर से राजनीतिक बदला लेना है।

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