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ऐसे ‘राम’ के चलते ही पुलिस के ‘बदन’ पर वर्दी का मान शेष है!

(यशवंत सिंह)

RRR देख रहा था, गौर सिटी मॉल ग्रेटर नोएडा में। फ़िल्म ख़त्म होने में घंटे भर शेष थे। अचानक ननिहाल से फोन पर फोन आने लगे। दो-तीन काल मामा के लड़के की आई। फिर मामी की कॉल आने लगी। शुरू में इग्नोर किया कि फ़िल्म के बाद रिंगबैक कर लूंगा लेकिन मामी की सेकेंड कॉल को उठा लिया। उनको जितना सुन पाया उसके मुताबिक़ ख़ानदान के एक अन्य मामा के नाबालिग बेटे को पुलिस ने पकड़ा है।

उनको बताया कि मैं सिनमाहाल में हूं, थोड़ी देर में करता हूं आपको कॉल!

घंटे भर में कौन सा पहाड़ टूट जाएगा…और हर किसी को पुलिस से छुड़ाने का ठेका कोई मैंने ही नहीं ले रखा है…ऐसा ही कुछ सोच फिर से फ़िल्म देखने में मैं मगन हो गया।

जब बाहर सड़क पर आया तब कॉल कर पूरे मामले को समझा। एक मामा के पंद्रह साल के बेटे ने घर में मौजूद तमंचे की तस्वीर मोबाइल से खींच कर अपने किसी जिगरी मित्र को भेजा। जिगरी मित्र ने कुछ अन्य जिगरियों को फ़ॉर्वर्ड किया होगा। ये चेन चलती चली गई होगी और पुलिस तक फ़ोटो पहुंच गई। पुलिस चेन पकड़ कर मूल फ़ोटो खेंचक तक पहुंच गई। मतलब मामा के बेटे धरे गए और थोड़ी ही देर में पुलिस टीम को घर ले जाकर वह ओरिज़िनल तमंचा बरामद करा दिया।

पुलिस टीम को इत्ते बड़े ‘गुडवर्क’ से खुश होना ही था। कई मध्यस्थ थाने पहुंचे। बातचीत सेटिंग गेटिंग शुरू हो चुकी थी। उसी दरम्यान मुझे सब जानकारी मिली तो एक पुलिस अधिकारी के सौजन्य से ग़ाज़ीपुर के एसपी राम बदन सिंह से बात हुई। उनके संज्ञान में मामला था। एक तमंचा और आधा दर्जन कारतूस की बरामदगी हुई है, पकड़ा गया लड़का नाबालिग है।

एसपी रामबदन जी से मेरा पूर्व परिचय न था पर उनके बारे में ये फ़ीडबैक था कि बेहद ईमानदार व्यक्ति हैं, सरकारी फ़ोन भी खुद ही उठाते हैं, सिस्टम का पैसा भी नहीं लेते हैं। इस फ़ीडबैक के चलते मुझे उम्मीद थी कि मेरी बात वह जरूर समझने की कोशिश करेंगे।

उनसे बात हुई। मैंने अपनी बात रख दी। लड़का नाबालिग है। विद्यार्थी है। नादानी की है। घर में किसने रखा, यह पता किया गया तो मालूम हुआ कि बाहर गिरा पड़ा था तो एक सज्जन चुपके से लाकर रख दिए थे। हालांकि यह तर्क मेरे गले भी नहीं उतर रहा था कि तमंचा किसी को गिरा मिला तो घर लाकर रख दिया और लौंडे को तमंचा घर में रखा मिला तो चुपके से फ़ोटो खींच लिया पर घर वाले इस बात पर अडिग थे। परिवार में कोई क्रिमिनिल या दबंग नहीं है। परिवार के मुखिया टीचर हैं। इसलिए घर में माहौल सात्विक और अनुशासित रहता है।

मैंने राम बदन जी को पूरी बात बताने के बाद अनुरोध किया कि आप खुद जांच करा लें, अगर तमंचा रखने वालों और इसकी फ़ोटो खींचने वाले का मोटिव/इंटेंशन ग़लत लगे तो जेल में डाल दीजिए, अगर नादानी में हुआ समझ आए तो इन्हें माफ़ कर एक मौक़ा दिया जाए!

रामबदन जी ने कोई आश्वासन नहीं दिया। बोले-मैं जांच करवा कर जो क़ानूनसम्मत होगा वह करूंगा।

कुछ देर बाद सूचना मिली कि कप्तान ने बालक को छोड़ देने का निर्देश दिया है।

थाने के मध्यस्थ निकल लिए। उनको पता चल गया कि मामला अब खुद पुलिस कप्तान के संज्ञान में है। इसलिए थाने स्तर से कोई डील नहीं हो सकती। थानेदार भी तनाव में आ गए। उनके ‘गुडवर्क’ पर पानी फिरता नज़र आ रहा था।

लड़का सकुशल घर पहुंचा दिया गया। एक बालक और एक परिवार कोर्ट-कचहरी, जेल-थाने के चक्कर से बच गया। नाबालिग का करियर नष्ट होते-होते बच गया। परिवार के लाखों रुपये तो बचे ही, कई दिन रात महीनों का तनाव भी बचा।

घर के मुखिया जो शिक्षक हैं, ने मुझे फ़ोन कर धन्यवाद आभार जताना चाहा तो मैंने उन्हें कहा कि धन्यवाद तो ईमानदार और संवेदनशील पुलिस कप्तान रामबदन सिंह जी को बोलिए जिन्होंने अफ़सर की तरह नहीं बल्कि एक आम इंसान की तरह हम लोगों की बातों व दुःख को समझा। वह चाहते तो नाबालिग लड़के सहित पूरे ख़ानदान को जेल भेज सकते थे। ऐसे केस बहुत होते हैं, जब एक तमंचा मिलने पर आरोपी की तस्वीर व पुलिस का गुडवर्क अख़बारों में छपता है और डील न हो पाने की सूरत में पूरा ख़ानदान तमंचा फ़ैक्ट्री चलाने के जुर्म में अंदर कर दिया जाता है।

मास्टर साहब बोले कि सच में देवता आदमी हैं कप्तान साहब, आप मेरी तरफ़ से धन्यवाद, प्रणाम, आभार बोलिएगा और कहिएगा कि ये बात हम लोग जीवन भर याद रखेंगे।

मैं राम बदन जी से मास्टर साहब की बात कह नहीं पाया। सोचा कि इस पर कुछ लिखूंगा ताकि दूसरे भी समझ जाएं कि घर में अवैध तमंचा रखना किसी दिन बहुत भारी पड़ जाएगा, हरअफ़सर राम बदन सिंह नहीं होता और हर परिवार मास्टर साहब जैसा भाग्यशाली नहीं होता।

थोड़ी बात ग़ाज़ीपुर के कप्तान राम बदन सिंह के बारे में। थोड़ी इसलिए क्योंकि वह लंबे समय तक टेररिस्ट उन्मूलन अभियानों में रहे हैं। इसलिए उनकी निजी जानकरियां ज़्यादा शेयर नहीं की जा सकती। घर-परिवार की सुरक्षा का मुद्दा है। वह लम्बे वक्त तक एसटीएफ और ईडी में रहे। बड़े-बड़े मिशन पर चुपचाप काम करते गए। बिना पुरस्कार और सम्मान की आकांक्षा किए। पीपीएस से आईपीएस प्रमोट किए जाने के एक माह बाद राम बदन जी को भदोही का कप्तान बनाया गया। उसके बाद अब ग़ाज़ीपुर की ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1985 तक रहे। बीएससी के छात्र थे। प्रांतीय पुलिस सेवा में सेलेक्ट हुए और फिर विभिन्न पदों, जगहों पर सेवा दी। एसटीएफ और ईडी में आमतौर पर इमानदार अफ़सरों को ही भेजा जाता है। उनकी सेवाओं के चलते राष्ट्रपति से कई बार गैलेंट्री अवार्ड और सराहनीय सेवा अवार्ड मिल चुका है। डीजीपी स्तर से भी कई बार सम्मानित हो चुके हैं। कहते हैं न, कुछ लोगों का काम बोलता है, वे खुद कम बोलते हैं।

रामबदन जी अपने शिक्षक पिता को ही रोल मॉडल मानते हैं। पिता के दिए संस्कार और सीख उन्होंने खुद में समाहित कर लिया।

राम बदन जी का अपने अधीनस्थों और थानेदारों को साफ़ निर्देश है, क़ानून के तहत काम करिए, अगर रिश्वतखोरी की शिकायत मिली तो छोड़ूंगा नहीं।

उनके आदेश का ख़ौफ़ थानेदारों पर दिखता है। तमंचा प्रकरण में जब नाबालिग को छोड़ने का निर्देश थानेदार के पास आया तो बालक की सुपुर्दगी के वक्त थानेदार ने मध्यस्थों और पुलिस वालों से समवेत स्वर में पूछा था-किसी ने किसी को किसी तरह का कोई रुपया पैसा या लेनदेन तो नहीं किया? तब मौके पर मौजूद हर पक्ष ने ज़ोर से जवाब दिया-नहीं!

कहानी का निचोड़ क्या है? बच्चे पर तो नज़र रखिए ही कि कहीं उसकी नज़र आपके किसी सीक्रेट पर तो नहीं है!  सेकेंड- खुद पर भी नज़र रखिए कि आपकी थोड़ी सी बेवकूफ़ी (जिसे आप चालाकी समझते हैं) कहीं पूरे परिवार के दुःख दर्द का कारण न बन जाए!

मेरी तरफ़ से राम बदन जी को एक सैल्यूट, आप अफ़सर बाद में, इंसान पहले हैं, इसे साबित होते देखा। कई लोग तो जेनुइन काम की सिफ़ारिश करने पर भी उसे नहीं करते, यहां तो मामला ही पेचीदा था जिसमें सब कुछ पुलिस पर निर्भर था, गेंद पुलिस के पाले में थी।

ऐसे राम के चलते ही पुलिस के बदन पर वर्दी का मान शेष है!

जै हिंद!

(लेखक यशवंत सिंह ग़ाज़ीपुर के मूल निवासी हैं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पत्रकारिता करते हैं और मीडिया फ़ील्ड की चर्चित वेबसाइट भड़ास4मीडिया डॉट काम के संस्थापक संपादक हैं)

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