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शराब कारोबारियों का टूटा ‘सिंडिकेट’ ! चड्ढा ग्रुप ने भी तोड़ा नाता

गाजीपुर (सुजीत सिंह प्रिंस)। शराब के कारोबार में पहले ‘सिंडिकेट’ का सिक्का चलता था। तब वह वक्त था जब छोटे और नए कारोबारी सिंडिकेट से घबराते थे। बल्कि सिंडिकेट की पूरी कोशिश रहती कि कारोबार में कोई नया आकर चुनौती न बन पाए लेकिन अब वह सिंडिकेट लगभग पूरी तरह टूट गया है।

गाजीपुर में शराब कारोबार पर करीब से नजर रखने वालों की मानी जाए तो शुरुआत में रामसकल सिंह और शिवशंकर सिंह का सिंडिकेट बना। बाद में सिंडिकेट में शिवजी सिंह जुड़े। फिर वाराणसी के जवाहर जायसवाल आए। उसके बाद तो सिंडिकेट का दायरा बढ़ा। गाजीपुर समेत पूर्वांचल के कई जिलों में सिंडिकेट ने कब्जा जमाया। उस वक्त एक जिले की सभी दुकानें एक साथ नीलाम होती थीं। पूर्वांचल की तरह प्रदेश के अन्य अंचलों में भी अलग-अलग सिंडिकेट थे। हर सिंडिकेट का अपना दबदबा था। अपना जलवा था। आलम यह था कि सिंडिकेट सरकार तक को अपने मुनाफे के लिए झुकाने का माद्दा रखते थे। आखिर सिंडिकेट की मनमानी से आजिज आकर साल 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने पूरी की पूरी आबकारी नीति ही बदल दी। जिलावार की जगह दुकानवार लाटरी सिस्टम से दुकानों का आवंटन शुरू हुआ। नतीजा छोटे और नए लोगों को कारोबार में आने का मौका मिला। सिंडिकेट का दबदबा बीते दिनों का किस्सा बन कर रह गया। जाहिर था जब सिंडिकेट में शामिल लोग सालों शराब बेचे तो वह एक झटके में उसे कैसे छोड़ते। लिहाजा वह अपने भाई-बंधु, सगे-संबंधी और नौकर-चाकर के नाम पर नए सिस्टम के तहत दुकानें लेने के लिए लाटरी डालने लगे। साथ ही सीएलटू-एफएलटू (थोक) में भी दखल बनाए।

उसी बीच जून 2011 में सिंडिकेट के अगुवा रामसकल सिंह का निधन हो गया और शराब की कारोबारी विरासत उनके बड़े बेटे डॉ. अशोक सिंह ने संभाली लेकिन उसके बाद सिंडिकेट का समीकरण बदलने लगा। साल 2017 आते-आते चड्ढा ग्रुप सिंडिकेट में इंट्री मारा और पुराने साझीदार जवाहर जायसवाल अलग हो गए। उधर डॉ.अशोक सिंह भी खुद को अलग कर लिए लेकिन हालिया घटनाक्रम यह है कि चड्ढा ग्रुप भी सिंडिकेट से कट गया है। यह कैसे हुआ। यह क्यों हुआ। यह सवाल उठ रहे हैं। जितने मुंह उतनी बातें। कुछ का कहना है कि मामला लेनदेन का है।

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