सुधि आई, गंगा में उतराए शवों का निस्तारण शुरू

गाजीपुर। गंगा में उतराए शवों की सुधि आखिर प्रशासन ने ली। बुधवार को शवों को निकाल कर गंगा किनारे ही उन्हें दफन करने का काम भी शुरू हुआ। इसके लिए मानव संसाधन के साथ ही जेसीबी, पोकलैंड का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। इस तरह गंगा में मिले शवों के निस्तारण का आंकड़ा फिलहाल प्रशासन की ओर से नहीं दिया गया है लेकिन लोगबाग गंगा में इस भयावह दृश्य को महामारी कोरोना से ही जोड़ कर देख रहे हैं।
गंगा के तटवर्ती गांवों के लोगों की मानी जाए तो करीब एक सप्ताह से शव बहते दिख रहे थे। वह लोग इसे सामान्य बात मान रहे थे लेकिन इसी बीच पुरवा हवा बहने लगी और एक-एक कर शव किनारे लगने लगे। उनकी सड़ांध से रहना दुश्वार हो गया। चील-कौवे सहित कुत्ते और वन्य जीव उन शवों को ग्रास बनाना शुरू किए।
इन शवों में कई सड़-गल चुके थे। कुछ शव ऐसे भी दिखे जो बिना कफन के थे। कुछ में अंतिम अनुष्ठान सामग्री की पोटलियां भी बंधी मिली। गाजीपुर में मिले शव करंडा तथा सेवराई ब्लॉक के तटवर्ती गांवों के पास उतराए थे।
हर श्मशान घाट पर शवों का रेला
गाजीपुर शहर के अलावा गाजीपुर में जमानियां, गहमर, सुल्तानपुर (मुहम्मदाबाद), चोचकपुर, जौहरगंज (सैदपुर) आदि स्थानों पर प्रमुख श्मशान घाट हैं। जहां आस पास के इलाकों सहित पड़ोसी जिलों के शव दाह संस्कार के लिए आते हैं। इधर इन घाटों पर हर रोज सामान्य दिनों की तुलना में चार-पांच गुना तक शव लाए जा रहे हैं। यहां तक कि शवों के दाह संस्कार के लिए साथ आए लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ रहा है।
…पर परंपरा नहीं मजबूरी
वैसे तो गाजीपुर में मौत के कुछ मामलों में दाह संस्कार के बजाए शवों के सीधे गंगा में प्रवाहित करने की परंपरा है। मसलन सर्पदंश से मौत के मामले में शवों को देहाती लोग केले के डंठलों में बांध कर गंगा में प्रवाहित कर देते हैं अथवा किसी परिवार में आयोजित मांगलिक कार्यक्रम के बीच में कोई सदस्य के निधन पर दाह संस्कार की जगह उसके शव को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं और मांगलिक कार्यक्रम समाप्त होने के बाद प्रतिकात्मक दाह संस्कार करते हैं। गंगा के तटीय गांवों के बुजुर्ग चर्चा करने पर यही कहते हैं कि शवों के प्रवाह की यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है लेकिन इतनी संख्या में एक साथ गंगा में आए शव वह पहली बार देख सुन रहे हैं। तब जाहिर है कि इस तरह शवों का गंगा में प्रवाह मजबूरी बन गई है। इसके पीछे आर्थिक, सामाजिक कारण माने जा रहे हैं। आर्थिक यह कि दाह संस्कार के लिए लकड़ी 1800 रुपये कुंतल के भाव मिल रही है। घाटों पर डोम राजा भी खूब मनमानी वसूली कर रहे हैं। लिहाजा इतने खर्च का बोझ उठाना गरीब परिवारों के लिए मुश्किल हो रहा है। फिर कोरोना संक्रमित व्यक्ति के शव के पास लोग जाने से भरसक बच रहे हैं। ऐसे में पीड़ित परिवार के लोग जैसे-तैसे शव को गंगा में प्रवाहित करना ही मुनासिब समझ रहे हैं।
डीएम ने गठित की टीम
डीएम एमपी सिंह एसपी डॉ. ओमप्रकाश सिंह संग सैदपुर के जौहरगंज श्मशान घाट का जायजा लिए और गंगा में शवों को प्रवाहित न करने देने के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किए। उन्होंने कहा कि धनाभाव में दाह संस्कार नहीं रुकेगा। जरूरतमंदों के लिए सरकार खर्च देगी। डीएम ने अपने ट्विटर हैंडल से पोस्ट कर बताया कि गाजीपुर के सभी अंतिम संस्कार स्थलों पर लकड़ी की पर्याप्त उपलब्धता है। मजिस्ट्रेट और पुलिस की संयुक्त टीमें गंगा के किनारे लगातार गश्त कर कड़ी निगरानी कर रही हैं।
बिहार शासन की टोकाटाकी के बाद सक्रियता!
रविवार को बिहार के सीमावर्ती जिला बक्सर के चौसा में गंगा किनारे शव उतराए मिले। बक्सर जिला प्रशासन ने इसकी छानबीन शुरू की। इस क्रम में सोमवार को बक्सर के अधिकारियों की एक टीम छानबीन के लिए गाजीपुर के सीमावर्ती गांव गहमर तक आई और लौट कर टीम ने अपनी सरहद में उतराए शवों को गाजीपुर के हिस्से से पहुंचने की रिपोर्ट दी। उसके बाद बक्सर डीएम ने फोन पर गाजीपुर डीएम से बात की। साथ ही बक्सर डीएम ने अपने मुख्य सचिव को वही रिपोर्ट भेज दी। तब बिहार के मुख्य सचिव ने यूपी के मुख्य सचिव से गंगा में शवों के प्रवाह को रोकने का आग्रह किया।