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‘ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे शकील ने ठगा नहीं’

गाजीपुर (यशवंत सिंह)। धोखाधड़ी कर बैंकों से अरबों रुपये का कर्ज लेने के मामले में लखनऊ में गिरफ्तार शकील हैदर जहां पुलिस की पूछताछ में अपने कारनामों को लेकर कई राज उगला है वहीं गाजीपुर में भी उसकी कारस्तानियों के कई किस्से सुने-सुनाए जा रहे हैं। बल्कि शकील के संदर्भ में यहां तक कहा जा रहा है-‘ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे शकील ने ठगा नहीं।‘

उन किस्सों की मानी जाए तो गाजीपुर में कई ऐसे हैं जो शकील एंड कंपनी से कभी ना कभी। कहीं ना कहीं। किसी ना किसी तरह ‘झटका’ खा चुके हैं। इनमें कुछ तो नामचीन चेहरे हैं…जिनकी घर अथवा बैंकों में पड़ी पूंजी को ‘चलायमान’ करने के लिए शकील एंड कंपनी ने ‘प्लान’ बताया। उसके बाद आवासीय भूखंड में निवेश और फिर पूंजी हजम।… बेचारे लुटे लोग बोले-टोके तो पहले अदबी से टरकाए गए। फिर बेअदबी से भगाए गए।

खैर इन किस्सों में कितनी सच्चाई है यह तो नहीं पता लेकिन शकील एंड कंपनी की बैंकों के साथ भी लगभग ऐसी ही कारस्तानियां की। यहां तक कि बैंक प्रबंधकों ने जब कर्ज वसूली की बात की तो उन्हें भी डराने, धमकाने की कोशिश हुई।

भाई रहा है बैंक कर्मी

शकील हैदर एंड कंपनी के लिए बैंक साफ्ट टारगेट रहे हैं। लखनऊ पुलिस की जांच में यह पता चला है कि वह अब तक विभिन्न बैंकों से बतौर कर्ज कुल करीब एक अरब 69 करोड़ रुपये ले चुका है। यहां तक कि हेलीकॉप्टर खरीदने के लिए भी कर्ज मंजूर करा लिया था। सवाल है कि सरकार की रोजगार योजनाओं के पात्रों तक को कर्ज देने में हीलाहवाली करने वाले बैंकर्स जालसाज शकील एंड कंपनी को कर्ज देने में इतने उदार कैसे हो गए। जाहिर है कि वह बैंकर्स की कमजोर कड़ी से वाकिफ रहा है। उसका छोटा भाई रईस ग्रामीण बैंक का कर्मचारी रहा है। बाद में जब शकील का ‘कारोबार’ आगे बढ़ने लगा तो उसने वह नौकरी छोड़ दी थी।

अपने इमामबाड़े के लिए गैर मुल्कों से भी कराई फंडिंग!

शकील हैदर मूलतः गाजीपुर के नोनहरा थानांतर्गत हुड़रही गांव का रहने वाला है। जहां वह आलीशान इमामबाड़ा भी बनवाया है। उसके निर्माण में करोड़ों की लागत आई है। उसका नाम ‘बाबे बाबुल’ रखा है। बताते हैं कि ऐसा आलीशान, खूबसूरत इमामबाड़ा पूर्वांचल में कहीं नहीं है। गांव के लोग बताते हैं कि अक्सर वह गैर मुल्कों के लोगों को मौका पड़ने पर इमामबाड़े में आमंत्रित करता और उसके निर्माण में बतौर मदद उनसे भी रकम लेता। गांव वाले बताते हैं कि करीब डेढ़ दशक पहले शकील गांव के ही पास आरा मशीन चलवाता था। उसकी लकड़ी के लिए गांव-गांव घूम कर पेड़ कटवाता था। उसके बाद वह ठेके-पट्टे में उतरा। इसकी शुरुआत उसने जिला पंचायत से की। फिर पीडब्ल्यूडी में घुसा और वहां कारनामे से बाज नहीं आया। बल्कि अमेठी में सड़क के ठेके में बगैर निर्माण ही करोड़ों रुपये का भुगतान करा लिया। उस मामले की विवेचना आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्लू) ने की और उसके विरुद्ध गैर जमानती वारंट भी जारी करा चुकी है। खबर है कि ईओडब्लू भी उसे अपनी कस्टडी में लेकर पूछताछ की तैयारी में है।

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