साहित्य का नायक: माधव कृष्ण को आचार्य रामचंद्र शुक्ल सम्मान 2025

गाजीपुर । (शिखा तिवारी)
माधव कृष्ण को आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचंद्र शुक्ल सम्मान 2025 से अलंकृत किए जाने का समाचार सुनकर हृदय गर्व और आनंद से भर गया। यह केवल एक व्यक्ति का सम्मान नहीं, बल्कि उस विचारधारा का अभिनंदन है जो लोकमंगल, मानवीयता और सत्य के प्रति समर्पित है।
पूज्य आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बिना हिंदी आलोचना अधूरी मानी जाती है। उनका साहित्य लोकमंगल की साधना और मानवीय प्रतिष्ठा की कथा है — और उसी परंपरा की शृंखला में आज माधव कृष्ण खड़े हैं।
इंजीनियर से साहित्य साधक तक की यात्रा –
माधव कृष्ण पहले इंजीनियर और टेक्नोक्रेट थे। परंतु जब वर्ष 2014 में वे गाजीपुर आए, तो उन्होंने वह जीवन त्याग दिया और कलम को कर्म बना लिया।
बिना शिकायत, बिना दिखावे — उन्होंने उस मार्ग को अपनाया जहां श्रम ही साधना है।
आज जब उन्हें यह सम्मान मिला है, वे फिर वही कहते हैं — “अभी मैंने किया ही क्या है।”
वह सदा अपने को साहित्येतर साहित्यकार कहते हैं — शायद इसलिए कि वे अपने भीतर अब भी एक जिज्ञासु छात्र को जीवित रखते हैं।
समीक्षा की ऊंचाई और संवेदना की गहराई –
उनकी रचनाएं — पिनाक, विचार सम्पुट, हिमशिला की देह थे घटते रहे, एक अदद शब्द के लिए, शिखा, कामरेडो को मूर्ति पूजा नहीं आती — आलोचना के संसार में नई दृष्टि देती हैं।
उनके दो काव्य और एक निबंध संकलन दिसंबर तक आने वाले हैं, जिनकी प्रतीक्षा पूरे साहित्य समाज को है।
गुरु का आशीर्वाद और परंपरा का उत्तराधिकारी –
उनके गुरु डॉ. पी.एन. सिंह ने कहा था — “यह मेरा उत्तराधिकारी है।”
यही वाक्य आज सत्य प्रतीत होता है।
डॉ. सिंह के जाने के बाद गाजीपुर की आलोचना-भूमि में जो रिक्तता आई थी, उसे भरने का कार्य माधव कृष्ण कर रहे हैं।
विचारों के योद्धा, शब्दों के साधक –
प्रो. अनिल राय ने उन्हें कहा — “वैचारिक योद्धा, प्रखर वक्ता, इंटेलेक्चुअल जायंट।”
प्रो. हर्षबाला शर्मा ने उनके लेखन को “ईमानदार, प्रांजल और निष्पक्ष” बताया।
वरिष्ठ कवि देवेंद्र आर्य ने वैचारिक मतभेदों के बावजूद उन्हें गोरखपुर प्रेस क्लब में सम्मानित किया।
और जब वरिष्ठ गीतकार कमलेश राय कहते हैं कि “माधव कृष्ण ने डॉ. पी.एन. सिंह की जगह भरी है”, तो वह गाजीपुर की साहित्यिक भूमि का गर्व बन जाता है।
स्वभाव में सादगी, कर्म में तपस्या –
सम्मानों की भीड़ में जहां लोग मंचों के लिए संघर्ष करते हैं, वहीं माधव कृष्ण अब भी शांत रहते हैं।
उन्हें केवल एक ही कला आती है — लिखना, पढ़ना, बोलना और सही का पक्ष लेना।
लोग कहते हैं — “आप मानव धर्म के सम्मेलनों में मत बोला कीजिए, कहीं साहित्यकार से बाबा न बन जाएं।”
तो वह मुस्कुराकर कहते हैं —
“लेबल लगाना लोगों का काम है, मेरा काम है सही काम करना।”
विवेकानंद की आभा वाले चिंतक –
बलिया की कवयित्री डॉ. कादम्बिनी सिंह उन्हें “स्वामी विवेकानंद का प्रतिरूप” कहती हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार जनार्दन राय कहते हैं — “मेरी दिली तमन्ना है कि आप वैश्विक स्तर पर सम्मानित हों।”
उनकी ही कविता में उनका व्यक्तित्व झलकता है —
करूंगा बिल्कुल वही जो ठीक लगता हो,
भले जग की रीति के विपरीत लगता हो।
यह पंक्ति ही उनके व्यक्तित्व का सार है — सत्य की राह पर चलने वाला, विचारों में प्रखर और कर्म में विनम्र साहित्य साधक।