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पिता को कंधा दिया, मुखाग्नि दी… फिर लौट आया जल्लाद बेटे का कर्तव्य पथ

गाजीपुर : पोस्टमार्टम हाउस पर 11 वर्षों से जल्लाद का काम करने वाले शेखर रावत की अचानक मौत ने पूरे जिले को झकझोर कर रख दिया। सीटी रेलवे स्टेशन पर रील बनाने के दौरान स्टेशन के पास टोटो से गिरकर उनकी दर्दनाक मौत हो गई।

शेखर रावत का जीवन तो पोस्टमार्टम हाउस में मृतकों का शरीर चीरते हुए बीत गया, लेकिन नियति का ऐसा कठोर प्रहार हुआ कि एक दिन उसी पोस्टमार्टम हाउस में उनका मृत शरीर पड़ा था—और सामने था उनका अपना बेटा सूरज, जिसने अपने पिता का पोस्टमार्टम खुद अपने ही हाथों से करना पड़ा।

कर्तव्य और भावनाओं का टकराव:

बचपन से ही पिता के साथ काम में हाथ बंटाने वाला सूरज जल्लाद के काम में परफेक्ट हो गया था। लेकिन क्या सूरज ने कभी सोचा था कि जिस पिता ने उसे यह हुनर सिखाया, एक दिन उसी पिता के मृत शरीर को चीरने का कठिन और हृदयविदारक कार्य भी उसे करना पड़ेगा?

पोस्टमार्टम टेबल पर पड़े पिता का निर्जीव शरीर… कांपते हाथ… और आंखों से झर-झर गिरते आंसू… यह दृश्य वहां मौजूद हर व्यक्ति को झकझोर गया। सूरज की दिल दहला देने वाली चीखें आसमान को चीर रही थीं।

“बापू, मुझे माफ कर दो… मैं मजबूर हूं!”
यह शब्द सुनकर वहां मौजूद हर व्यक्ति की आंखें नम हो गईं। गाजीपुर के पोस्टमार्टम हाउस ने पहली बार ऐसा मंजर देखा, जहां एक बेटे को अपने पिता का पोस्टमार्टम करना पड़ा।

मुखाग्नि देकर निभाई अंतिम जिम्मेदारी:

पिता के निधन के बाद सूरज ने खुद को संभालते हुए पूरी रीति-रिवाज के साथ अपने पिता को कंधा दिया और मुखाग्नि दी। पिता का अंतिम संस्कार करने के बाद सूरज ने गम को भुलाकर कर्तव्य पथ पर वापसी की। अपने पिता के सिखाए हुए जल्लाद के काम को पुनः शुरू किया। यह एक संत जैसी मानसिकता का परिचायक है, जो समान्य लोगों के बस की बात नहीं है।

समाजसेवियों का आर्थिक सहयोग:

शेखर रावत के अंतिम संस्कार में समाजसेवी कुंवर विरेन्द्र सिंह, डॉ. नारायण पांडेय, फार्मासिस्ट  राजेश दूबे और पोस्टमार्टम हाउस के सभी स्टापों का आर्थिक सहयोग रहा। सभी ने मिलकर शेखर रावत को अंतिम विदाई दी।

कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल:

गाजीपुर ने शायद ही कभी ऐसी दिल को चीर देने वाली घटना देखी होगी। सूरज के इस अदम्य साहस और कर्तव्यनिष्ठा ने हर दिल को झकझोर कर रख दिया। एक पुत्र का अपने पिता को कंधा देना और मुखाग्नि देना तो सामान्य बात है, लेकिन पिता का पोस्टमार्टम करना और फिर उसी कर्तव्य पथ पर लौट आना—यह साहस और समर्पण का अनुपम उदाहरण है।

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