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सच्चा लीडर ही समाज और देश को नई ऊर्जा दे सकता है

रमाकांत राय की आठवीं पुण्य तिथि पर विशेष

शशांक राय, अवथही 

गाजीपुर। बाबा (स्व. रमाकांत राय) की आठवीं पुण्य तिथि (दस फरवरी) आ गई। सातवीं और आठवीं पुण्य तिथि के बीच बहुत कुछ बदल गया। दुनिया तो बदल ही गई साथ ही हमने अपने परिवार के एक मुख्य स्तंभ गइया बाबा (स्व. रामजीत राय) को भी खो दिया। कहते हैं कि पहली और तीसरी पीढी में बहुत ही गहरा व आत्मीय संबंध होता है। भावनाएं उनसे इस कदर जुड़ी होती हैं कि दोनों पिढ़ियां एक दूसरे में आत्मसात नजर आती हैं।

बाबा उस पीढ़ी के पहले स्तंभ है और गइया बाबा आखिरी प्रतिनिधि। कितने भी भयानक मंजर आए, बड़ी से बड़ी मुसीबत आई, हम आश्वस्त रहते कि बाबा हैं न। जैसे रश्मिरथी में कर्ण ने कहा है-‘जब चले वज्र दुर्योधन पर, पहले ले लूं अपने सर पर’। बाबा के चले जाने के बाद गइया बाबा ने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया पर समय की दीवार ने इस कड़ी से भी हम लोगों को महरूम कर दिया। यह स्तंभ गिरा और अब हम लोगों के बीच फलक खुला है, परंतु भले ही शारीरिक रूप में नहीं, वे लोग अभी भी हमारी यादों में जीवित हैं। उनकी जिंदगी से सीख हमें और मजबूत, कठोर, ताकतवर के साथ ही मुफलिसी के दौर से बाहर निकलने के लिए नेतृत्व की क्षमता का कैसे विकास हो की सीख देती है। यह बात मुन्ना चाचा (राजेश राय) की शादी की है। बाबा बारात में नहीं गए। इस कारण दरवाजे पर एक भावनाओं का समंदर उमड़ पड़ा। मैंने उस समय तो कुछ नहीं बोला पर जब बारात से लौटकर घर आया तो मैंने बाबा से इसका  कारण पूछा, तो बाबा बोले, अगर मैं जाता तो उनके इज्जत में गइया बाबा पीछे हट जाते, भले ही शादी उनके लड़के की ही क्यों न हो। इस लिए उनका भी कर्तव्य बनता है कि ये मौका उन्हें दिया जाए। इसी कर्तव्यबोधता की वजह से वह मुन्ना चाचा के किसी भी बहन के तिलक में भी नहीं गए। दस साल बाद मैंने पढ़ कर सीखा की यह नेतृत्व विकास का एक अवितीय उदाहरण है। एक अच्छा लीडर वह होता है जो दूसरों में भी नेतृत्व की क्षमता विकसित करे। यदि भगवान श्रीराम ने हनुमान जी को सब कुछ बता दिया होता कि उन्हें कैसे सागर को पार करना है, कैसे लंका में आग लगानी है तो फिर हनुमान जी का व्यक्तित्व कैसे निखरता। ये चीजें हम पढ़कर सीखते हैं। पर बाबा ने अपनी जिंदगी की किताब से सीखा। वहीं दूसरी ओर गइया बाबा का बाबा के प्रति निष्ठा और आदर अनुकरणीय है। कुछ चीजें तो मैंने अपनी आंखों से देखा है।

गइया बाबा कभी भी बाबा के साथ एक चरपाई या चौकी पर साथ नहीं बैठते थे। वह कहते थे कि भइया बड़े हैं। कहते हैं कि बाबा और गइया बाबा पीढ़ियों से अलग थे पर इतना समर्पण और आदर तो अपने भाइयों में भी नहीं दिखता। दूसरों के बारे में मैं क्या कहूं। यह सब तो मैं खुद भी शायद ही निभा पाऊं। हमारे परिवार के मोदी जी और अमित भाई नहीं रहे। पर उनकी सीखें अभी भी जिंदा हैं। आज की चुनौतियों से लड़ने के लिए हम सबको अपने भीतर नेतृत्व की क्षमता विकसित करनी होगी। आज के संर्भ में एक अच्छा नेता ही परिवार, समाज, देश और दुनिया को कोरोना अथवा अन्य महामारियों से लड़ने की ताकत दे सकता है। वहीं अगर हम आपसी प्रेम और सम्मान की भावना अपनाएं तो मनमुटाव तो कम होगा ही, परिवार भी टूटने से बच जाएंगे। वैसे भी एकता में ही शक्ति है।

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बाबा और गइया बाबा के बाद हमें अपनी सुरक्षा के इंतजाम खुद करने होंगे, शायद बाबा भी यही चाहते थे। एक चिड़िया भी अपने बच्चों को घोसले से स्वयं उड़ा देती है ताकि वे खुद अपना आशियाना बना सकें । बाबा हमेशा अपने पैरों पर खड़े होने की सीख देते थे। उन महान आत्माओं की जिन्दगी का एक अंश भी हम अपने अंदर उतार सकें तो यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

भगवान श्रीकृष्ण ने भी भगवतगीता में कहा है-

न जायते म्रियते वा कदाचि

नायं भूत्वा भविता वा न भूय: |

अजो नित्य: शाश्वतोऽयां पुराणो

न हन्यते हन्यमाने शरीरे ||

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