ब्रेकिंग न्यूजराजनीति

…तब सपा के लिए सबसे जटिल, पेंचदार सीट सदर !

गाजीपुर। सपा के लिए गाजीपुर की सभी सात सीटों में अकेले सदर सीट ही जटिल, कठिन, पेंचदार लग रही है। वजह पिछले चुनावों के रुझान। जातीय समीकरण और भौगोलिक बुनावट। तुर्रा यह कि इसी सीट पर पार्टी में टिकट के खंचियन दावेदार हैं।

जहां तक पिछले चुनावों के रुझानों की बात है तो इस सीट पर बढ़त दिलाने वाले वोटरों को सपा के बहुसंख्यक वर्ग के अगड़े नेता ही रिझा पाए हैं। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी नौसिखिया नेता विजय मिश्र को टिकट दी थी। वह जैसे-तैसे बसपा के डॉ.राजकुमार गौतम से जीत गए थे। जीत का फासला महज 241 वोटों का था। 2017 के चुनाव में पार्टी राजेश कुशवाहा पर दाव लगाई थी। वह भाजपा की डॉ.संगीता बलवंत से 32 हजार 607 वोटों से पिछड़ गए थे।

सदर के बहुसंख्यक वर्ग के वोटरों के मिजाज को लोकसभा चुनावों के रुझानों से समझने की कोशिश की जाए तो 2009 के लोकसभा चुनाव में सपा के राधेमोहन सिंह जीते थे। सदर विधानसभा क्षेत्र में वह अपने प्रतिद्वंद्वी बसपा के अफजाल अंसारी पर 15 हजार 792 वोटों की बढ़त दर्ज कराए थे लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा राधेमोहन सिंह की जगह शिवकन्या कुशवाहा को उतारी। सदर विधानसभा क्षेत्र में वह भाजपा के मनोज सिन्हा से दस हजार 427 वोट से पिछड़ गई थीं। फिर बारी आई 2019 के लोकसभा चुनाव की। सपा का बसपा से गठबंधन था। बसपा के अफजाल अंसारी शानदार जीत दर्ज कराए लेकिन सदर विधानसभा क्षेत्र में वह भाजपा के मनोज सिन्हा से चार हजार 309 वोटों से पीछे रह गए थे।

अब रही बात सदर विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण की तो कुल तीन लाख 62 हजार 26 वोटरों में सबसे ज्यादा वोटर बिंद-मल्लाह तथा यादव हैं। उसके बाद अनुसूचित जाति, कुशवाहा, राजपूत, ब्राह्मण-भूमिहार के अलावा वैश्य, कायस्थ, मुस्लिम वोटर हैं। यादव, मुस्लिम सपा के तो अनुसूचित जाति बसपा के स्वभाविक समर्थक माले जाते हैं जबकि बिंद वोटरों की प्राथमिकता अपने स्वजातीय उम्मीदवार हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा छोड़कर अंसारी बंधुओं की अगुवाई वाले कौमी एकता दल से चुनाव लड़ीं ओमकला बिंद कुल 36 हजार 353 वोट बटोर ली थीं। 2017 के चुनाव में भाजपा बिंद कार्ड ही आजमाई। डॉ.संगीता बलवंत को टिकट दी। अपेक्षित नतीजा मिला और लगभग तय है कि इस बार भी भाजपा उन्हीं पर दाव लगाएगी।

सदर विधानसभा क्षेत्र की भौगोलिक बुनावट में गाजीपुर शहर भी शामिल है। इस शहरी क्षेत्र में कुल 90 बूथ हैं। इस क्षेत्र का राजनीतिक मतलब भाजपा का गढ़। इस बात की पुष्टि इससे भी होती है कि गाजीपुर नगर पालिका चेयरमैन पर लगातार ढाई दशक से भाजपा का ही कब्जा है। पिछले चेयरमैन चुनाव में सपा प्रमुख समाजसेवी विवेक सिंह शम्मी की मां प्रेमा सिंह को लड़ाई। वह करीब 14 हजार वोट लेकर भाजपा की सरिता अग्रवाल के सामने कड़ी चुनौती पेश की थीं। जाहिर था कि सपा के लिए उस चुनाव में वह रिकार्ड वोट था।

2012 के विधानसभा चुनाव में सपा के विजय मिश्र की जीत के पीछे राजपूत वोटरों का सपा-भाजपा के बीच बंटवारा के साथ ही शहरी वोटर भी थे। मूलतः शहर के ही रहने वाले विजय मिश्र एकमुश्त करीब नौ हजार शहरी वोट अपनी झोली में गठिया लिए थे।

वैसे तो सदर विधानसभा सीट से सपा में टिकट मांगने वालों की संख्या 40 से भी अधिक है। उनमें ज्यातर तो ऐसे भी हैं जिन्हें पार्टी मुखिया अखिलेश यादव नाम और शकल से भी पहचानते नहीं हैं। इस दशा में तय है कि वह दावेदारों के आवेदन पहली ही स्क्रूटनी में कट गए होंगे। तब यह भी हैरानी नहीं कि शेष प्रमुख उम्मीदवारों में पूर्व सांसद राधेमोहन सिंह, राजेश कुशवाहा आदि में ही किसी एक का नाम फाइनल होगा। वह भी पिछले चुनावों के रुझान, जातीय समीकरण और उनकी खुद की राजनीतिक हैसियत का आकलन कर।

यह भी पढ़ें–पूर्व मंत्री के क्षेत्र में सर्वाधिक ‘शतकवीर‘

 ‘आजकल समाचार’ की खबरों के लिए नोटिफिकेशन एलाऊ करें

Related Articles

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker