सांसद अतुल इलाकाई राजनीति से खुद को किए दूर

भांवरकोल/गाजीपुर (जयशंकर राय)। सांसद अतुल राय की पिछले पंचायत चुनाव तक इलाकाई सियासत में प्रभावी भूमिका रहती थी और उसका मौर अंसारी बंधुओं के सिर बंधता था लेकिन इस बार के चुनाव में अतुल की नामौजूदगी में इलाके की सियासत किस दशा-दिशा में जाएगी। इसका सही अंदाजा हाल-फिलहाल नहीं मिल रहा लेकिन यह जरूर साफ हो गया है कि इस चुनाव में उनकी प्रत्यक्ष ही नहीं बल्कि अप्रत्यक्ष भी कोई दखल नहीं रहेगा।
दरअसल पिछले चुनाव से अब तक गंगाजी में बहुत पानी बह चुका है। अव्वल तो एक कथित यौन उत्पीड़न के मामले में अतुल इन दिनों नैनी जेल में निरुद्ध हैं। दूसरे अंसारी बंधुओं से वह बहुत दूर हो चुके हैं। फिर उनका सियासी कद बहुत बढ़ चुका है। देश की सबसे बड़ी पंचायत में खुद पहुंच चुके हैं। वह घोसी से सांसद हैं।
सांसद के समर्थकों की तटस्थता और इसी बीच अपने पैतृक गांव के लोगों के लिए आई उनकी खुली चिट्ठी से यही अंदाजा मिल रहा है कि इस बार जवार की क्या ग्राम पंचायत वीरपुर के प्रधान तक के चुनाव में उनका कोई सीधा दखल नहीं रहेगा।
वीरपुर के लोगों के नाम भेजी चिट्ठी वह सांसद की हैसियत से नहीं भेजे हैं। बल्कि रिंकू (उप नाम) के नाम से भेजे हैं। चिट्ठी का मजमून एक सामान्य वीरपुरिया की तरह है। उसकी भाषा, कथ्य और लय में एकरूपता है। आत्मीयता है और स्पष्टता है। वह चिट्ठी अपने दरवाजे पर एकत्र हुए गांव के लोगों के बीच पढ़ कर उनके पिताश्री भरत सिंह ने सुनाई।
चिट्ठी की शुरुआत चैत्र नवरात्र और माह-ए-रमजान की हार्दिक शुभकामनाओं से थी। चिट्ठी में अतुल ने इस बार अपने गांव के प्रधान पद की नामजदगी करने वाले लोगों का बकायदे नाम लेकर साल 2010 से पंचायत चुनाव में अपने लिए उनका और उनके अभिभावकों से मिले अहैतुकी सहयोग का जिक्र करते हुए गांव के लोगों से निवेदित शब्दों में कहा है कि इस बार चुनाव में वह सभी अपने विवेक से सुयोग्य, सामर्थ्यवान को ग्राम प्रधान चुनने के लिए स्वतंत्रत हैं। इसमें उनका स्वंय का अथवा परिवार का किसी विशेष के लिए कोई आग्रह, अपेक्षा नहीं रहेगी। चिट्ठी की इन पंक्तियों में यह भी जोड़े हैं-गांव के सभी परिवार के सभी सदस्यों के लिए, चाहे वह किसी जाति, धर्म के हों, उनके लिए मेरा दरवाजा बराबर खुला है और खुला रहेगा। चिट्ठी का समापन उन्होंने इस निवेदन के साथ किया है कि गांव के लोग वैश्विक महामारी कोरोना से बचने के लिए हर जरूरी उपायों की अनदेखी न करें। अंतिम पंक्ति में वह लिखते हैं-गांव को लोगों के आशीर्वाद से मुझे न्याय मिलेगा और मैं बेदाग होकर उनके बीच शीघ्र ही उपलब्ध हो जाऊंगा।
अतुल ने वीरपुर की बदल दी सूरत
एक दशक पहले तक भांवरकोल की बड़ी ग्राम पंचायतों में शामिल वीरपुर की सूरत भी वैसी ही थी जैसे गंगा तटीय दूसरी ग्राम पंचायतों की आज दिखती है। वही बजबजाती नालियां। वही अंधेरे में डूबी गलियां। वही रास्ता विहीन दलदली गंगा घाट। सामुदायिक आयोजनों के लिए छाजन के नाम पर खुला आसमान और उपेक्षित पड़े देवालय स्थल लेकिन साल 2010 में अतुल राय के भाई पवन राय ग्राम प्रधान बने तब वीरपुर की सूरत बदलनी शुरू हुई और आज वहां पक्की और अपने हद में प्रवाहित होती नालियां। रोशन गलियां। सुगम रास्ते से जुड़े गंगा का पक्का घाट। द्वारिकाधीश मंदिर सहित अन्य प्रमुख बस्तियों के पास बारात घर हैं। अतुल अपनी चिट्ठी में लिखे हैं कि गांव के असरनाथ मंदिर को कटान से बचाने लिए सीढ़ी युक्त बांध और कब्रिस्तान की चाहरदीवारी का निर्माण का काम अभी शेष है। उन्हें भी पूरा कराया जाएगा।
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