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गरीब मरीजों की जेब पर प्रहार, BHU OPD शुल्क बढ़ोतरी के खिलाफ डॉ. ओम शंकर की दर्दभरी पुकार इलाज अधिकार है, सौदा नहीं 

वाराणसी : बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल अस्पताल में OPD टिकट शुल्क को 10 और 30 रुपये से बढ़ाकर सीधे 50 रुपये कर देने ने गरीब और मध्यमवर्गीय मरीजों की चिंताओं को और गहरा कर दिया है। सरकारी अस्पताल का उद्देश्य सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध कराना होता है, लेकिन BHU में लगातार बढ़ा शुल्क इस मूल भावना पर सवाल खड़े कर रहा है।

छोटे से आधे A4 पन्ने की प्रिंटिंग लागत जहाँ 1 रुपये से भी कम है, वहीं उसके लिए 50 रुपये वसूलने की नीति आर्थिक और प्रशासनिक दोनों स्तरों पर उचित नहीं मानी जा रही है। BHU के पास अपना सरकारी प्रिंटिंग प्रेस है, और डिजिटल HIMS सिस्टम भी करोड़ों के खर्च के बाद लागू होना था—लेकिन न डिजिटल OPD चालू हुआ, न कागज़ का खर्च कम हुआ, उलटा शुल्क और बढ़ा दिया गया।

इसी बीच BHU कार्डियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. ओम शंकर ने अपने फेसबुक पर यह शुल्क वृद्धि “गरीब मरीजों पर अनुचित बोझ” बताते हुए कड़ा विरोध किया है।
उनकी यह मुखर आवाज उन लाखों परिवारों की सच्चाई को उजागर करती है जो महंगी निजी स्वास्थ्य सेवाओं के चलते पहले ही विवश हैं और अब सरकारी अस्पतालों में भी बढ़ती फीस की मार झेल रहे हैं।

डॉ. ओम शंकर हमेशा से गरीब और जरूरतमंद मरीजों के हिमायती रहे हैं। वह बिना भेदभाव इलाज के लिए जाने जाते हैं और दिल के रोगियों को समय व संवेदना दोनों देने के लिए मरीज उन्हें “गरीबों का मसीहा” कहते हैं। OPD शुल्क वृद्धि पर उनकी आपत्ति सिर्फ एक डॉक्टर का बयान नहीं—एक संवेदनशील नागरिक की चेतावनी भी है।

उन्होंने स्पष्ट कहा कि—

  • स्वास्थ्य सेवाओं में शुल्क निर्धारण मरीजों की क्षमता देखकर होना चाहिए
  • प्रशासन को पारदर्शिता रखनी चाहिए
  • OPD टिकट महंगा कर देना समस्याओं का समाधान नहीं, बल्कि नए संकट पैदा कर देता है

उधर आम मरीजों का कहना है कि जब BHU का वार्षिक बजट पहले ही कई गुना बढ़ चुका है, तब सबसे आम सेवा—OPD टिकट—को महंगा करना समझ से परे है। ग्रामीण और गरीब मरीजों के लिए यह 50 रुपये हर बार की भारी आर्थिक बाधा बन सकता है।

इस विवाद के बीच एक ही बात सामने आती है—
क्या सरकारी अस्पताल अब सेवा की जगह शुल्क को प्राथमिकता दे रहे हैं?

डॉ. ओम शंकर की आवाज इस बहस के केंद्र में है। उन्होंने जो प्रश्न उठाए हैं, वे सिर्फ एक शुल्क वृद्धि के विरोध नहीं, बल्कि उस स्वास्थ्य व्यवस्था की चिंता हैं जहाँ गरीब को इलाज का अधिकार मिलता है या नहीं—यह तय होता है उसकी जेब देखकर।

सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन को यह समझना होगा कि—
इलाज सुविधा नहीं, अधिकार है। और कोई भी नीति गरीबों तक पहुंच को कठिन बनाती है, तो वह नीति जनहित नहीं कहलाती।

BHU OPD शुल्क वृद्धि पर उठी यह प्रतिरोध की आवाज अब लाखों मरीजों की उम्मीद भी बन चुकी है।

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