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जिला पंचायतः चेयरमैन चुनाव में दाव पर विधायक डॉ.बीरेंद्र यादव की प्रतिष्ठा!

गाजीपुर। सियासत में भी वक्त को आगे बढ़ते देर नहीं लगती और बढ़ते वक्त के साथ व्यक्ति का सियासी कद, वजन बढ़ता जाता है।

पिछले जिला पंचायत चुनाव की ही तो बात है। डॉ.बीरेंद्र यादव को चेयरमैन बनना था। तब इनके पिताश्री कैलाश यादव तत्कालीन अखिलेश सरकार में पंचायती राज मंत्री थे। बावजूद विरोधी पार्टियों सहित खुद उनकी ही समाजवादी पार्टी में कई ऐसे शूरमे थे जो उन्हें जिले की उस पहली कुर्सी तक पहुंचने न देने के लिए हर हिकमत लगा दिए थे लेकिन डॉ.बीरेंद्र यादव चेयरमैन की कुर्सी पर बैठने में कामयाब हो गए थे। हालांकि उस जीत का श्रेय व्यक्तिगत तौर पर डॉ.बीरेंद्र यादव को देने के बजाए बाहरी और भीतरी विरोधियों ने उनके पिताश्री के ‘प्रताप’ को दिया था।

खैर! वक्त आगे बढ़ता रहा। हालात भी बदलते रहे। डॉ.बीरेंद्र यादव के सिर से अचानक पिता का साया उठ गया। पिता की खाली हुई जंगीपुर विधानसभा सीट के लिए हुए उप चुनाव में पार्टी उनकी माताश्री किस्मतिया देवी को लड़ाई। वह विधायक चुनी गईं। इधर डॉ.बीरेंद्र जिला पंचायत की कुर्सी पर बन रहे।

फिर बारी आई 2017 में विधानसभा के आम चुनाव की। पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता दिवंगत कैलाश यादव की सारी सियासी विरासत पुत्र डॉ.बीरेंद्र यादव के नाम कर दी। जंगीपुर सीट से टिकट देकर चुनाव मैदान में उतार दी। बाहरी विरोधियों की तमाम घेरेबंदी और भीतरी विरोधियों की लंगड़ी के बावजूद वह पार्टी की उम्मीद पर खरे उतरे। साथ ही उनके भी मुंह बंद करा दिए जो जिला पंचायत चुनाव की जीत को पिता के प्रताप का नतीजा बताकर उनकी खुद की सियासी समझदारी को कमतर आंके थे।

जाहिर था विधायक चुन जाने के बाद डॉ.बीरेंद्र को जिला पंचायत से इस्तीफा देना पड़ा और तब खुद से खाली हुई जिला पंचायत की सीट के लिए हुए उप चुनाव में पार्टी उम्मीदवार को जीत दिलवाकर दोबारा उन्होंने अपनी सियासी हैसियत का लोहा मनवाया दिया था।

अब फिर जिला पंचायत चेयरमैन चुनाव की बारी आई है। पार्टी के लिए लगातार ढाई दशक से चेयरमैन की कुर्सी पर कब्जा बनाए रखने की बड़ी चुनौती है। वैसे तो इस चुनौती का सामना करने की जिम्मेदारी पार्टी के सभी बड़े-छोटे नेताओं की है लेकिन देखा जाए तो सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा डॉ.बीरेंद्र यादव की फंसी है। एक तो वह खुद पार्टी में ओहदेदार, वजनदार नेता बन चुके हैं। दूसरे 67 सदस्यीय जिला पंचायत में इस बार सर्वाधिक हम बिरादरी के सदस्य पहुंचे हैं।

इस दशा में जहां जिला पंचायत पर पार्टी का कब्जा बनाए रखने के लिए उनकी नैतिक जिम्मेदारी, जवाबदेयी बनती है। वहीं पिता के बाद हम बिरादरी में खुद के प्रभुत्व को आंकना है और साबित भी करना है।

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