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चित्रकूट जेल शूट आउटः क्या न्यायिक जांच में सच आएगा सामने

गाजीपुर (सुजीत सिंह प्रिंस)। चित्रकूट जेल शूट आउट की खबरों को लेकर करीमुद्दीनपुर थाने के महेंद गांव के लोगों में उत्सुकता बनी हुई है। ऐन ईद के दिन हुई इस सनसनीखेज घटना में मारा गया बसपा नेता भाई मेराज खां मूलतः इसी गांव का रहने वाला था। शासन के आदेश पर अलग-अलग तीन टीमें इसकी जांच कर रही हैं परंतु अभी तक की जांच में क्या निष्कर्ष निकाला। यह बताने को कोई तैयार नहीं है। इसी बीच जांच की कड़ी में एक और जांच जुड़ गई है।

चित्रकूट के जिला जज ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन) अरुण कुमार यादव को इस बहुचर्चित कांड की जांच सौंपी है। दरअसल न्यायिक जांच की सिफारिश चित्रकूट के डीएम ने की थी। संभव हो कि डीएम चित्रकूट को पुलिस जांच पर भरोसा नहीं था या यूं कहें कि कहीं न कहीं उन्हें यह शक रहा हो कि इस कांड में जेल कर्मचारियों सहित अन्य सफेदपोश लोगों की भूमिका हो सकती है। अतः पुलिस इस मामले की निष्पक्ष जांच नहीं कर सकती।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या न्यायिक जांच में इस दुस्साहसिक कांड की सच्चाई सामने आएगी और क्या इस कांड के असली साजिशकर्ताओं के चेहरे बेनकाब होंगे।

चित्रकूट जेल से जो खबरें छन- छन कर बाहर आ रही हैं, उससे तो यही पता चलता है कि एक सोची-समझी साजिश के तहत इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया। मेराज के परिवारीजनों की बात को अगर सच माना जाए तो मेराज की किसी से दुश्मनी नहीं थी। यहां तक कि कातिल अंशु दीक्षित से भी उसके अच्छे ताल्लुकात थे। उनका कहना है कि घटना के बाद अंशु दीक्षित का मोबाइल फोन गायब कर दिया गया जबकि उससे पता चलता कि दीक्षित कि किन-किन लोगों से बातचीत होती थी। वह किनके संपर्क में था और आखिरी वक्त में कौन उसे दिशा निर्देश दे रहा था। आदि आदि।

यह लगभग तय है कि न्यायिक जांच अधिकारी के लिए घटना की तह तक पहंचने में कई चुनौतियों का सामना करना होगा। पहली तो यह कि घटना वाले दिन जेल में सुबह-सुबह क्या-क्या हुआ था। इसका पूरा खाका खींचना होगा। इसके लिए न्यायिक जांच अधिकारी को तमाम बंदियों के बयान भी दर्ज करने पड़ सकते हैं। यह भी पता लगाना होगा कि क्या मेराज खां तथा मुकीम काला की हत्या के बाद अंशु दीक्षित ने आत्मसमर्पण करने की कोशिश की थी। अगर की थी तो फिर उसे गोली क्यों मारी गई। क्या दीक्षित को जिंदा पकड़ा जा सकता था। अगर पुलिस के लिए गोली चलाने की नौबत आई भी तो सीधे उसके सीने में एक दर्जन गोलियां उतारने की जरूरत क्यों पड़ी। हाथ-पैर में भी गोली मारी जा सकती थी। जब मुंबई हमले में शामिल रहे अजमल कसाब को घायल करके जिंदा पकड़ा जा सकता था। तब चित्रकूट जेल में घटना के वक्त अंशु दीक्षित को क्यों नहीं जबकि चित्रकूट पुलिस खुद बता रही है कि मेराज और मुकीम को मारने के बाद डेढ़ घंटे तक अंशु दीक्षित कुछ बंदियों को बंधक बना कर उससे सौदेबाजी करता रहा। सवाल है कि अगर दीक्षित को खुद अपनी जान की परवाह न होती तो वह बंदियों को बंधक बना कर पुलिस से सौदेबाजी क्यों करता। इसके अलावा न्यायिक जांच अधिकारी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह पता लगाने की भी होगी कि आला ए कत्ल यानी नाइन एमएम जैसी स्वचालित घातक पिस्तौल आखिर जेल में पहुंची कैसे।

चित्रकूट जेल से छन कर आई एक और खबर चौंकाने वाली हैं। एक जेल वार्डन की घटना से कुछ ही दिन पहले बागपत जेल से तबादला कर चित्रकूट जेल में तैनाती हुई थी। साल 2018 में जब बागपत जेल में कुख्यात माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी की हत्या हुई थी। तब उस जेल वार्डन की तैनाती बागपत में ही थी। बल्कि उस कांड में असलहों को जेल के भीतर पहुंचाने में उसकी भूमिका सीबीआई जांच के दायरे में है।

हालांकि न्यायिक जांच के दायरे में चित्रकूट जेल की सीसीटीवी भी होगी कि क्या घटना वाले दिन सीसीटीवी का खराब होना महज एक इत्तेफाक था या कुछ और। सीसीटीवी कब से खराब थी। उसे ठीक कराने के क्या प्रयास हुए थे।

कानून की भाषा में एक शब्द है मेंसरिया। यह एक लैटिन शब्द है। हिंदी में इसका अर्थ होता है उद्देश्य या मंशा। कानून के अनुसार हर अपराध की एक मेंसरिया यानी उद्देश्य होता है। न्यायिक जांच अधिकारी इस हत्याकांड के उद्देश्यों की तह तक जाने का जरूर प्रयास करेंगे। वैसे इतना तो तय है कि कातिल अंशु दीक्षित ने मेराज को मारने की पहले से ही योजना बना रखी थी। इसी योजना के तहत उसने जेल में पिस्तौल मंगवाई। अब सवाल यह है कि उसकी मेराज से क्या दुश्मनी थी या उसने किसी और के इशारे पर उस घटना को अंजाम दिया। अभी तक कि पड़ताल में सामने आया है कि उसने घटना के पहले मेराज को गले लग ईद की मुबारकवाद दी थी। फिर पूरे इत्मीनान से गोलियां दागा था। अगर इस सूचना पर भरोसा किया जाए तो उसकी मेराज से कोई पुरानी रंजिश नहीं थी और न मेराज को उसके इरादे का जरा भी इल्म था। अगर होता तो वह उसके नजदीक ही नहीं फटकता। गले मिलना तो दूर की बात है। न्यायिक जांच अधिकारी के सामने सभी कड़ियों को जोड़ने की कठिन चुनौती है। अगर वह इसमें सफल रहते हैं तो इस सनसनीखेज हत्याकांड से पूरा पर्दा उठने की उम्मीद की जा सकती है।

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