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…पर स्वामी प्रसाद मौर्य का गाजीपुर में कितना असर

गाजीपुर। स्वामी प्रसाद मौर्य के पाला बदलने से सपा कितने मुनाफे में रहेगी और भाजपा का कितना नुकसान होगा। प्रदेश स्तर पर इसका अंदाजा तो आगे मिलेगा लेकिन यह जरूर है कि गाजीपुर के मौर्यवंशीयों में स्वामी प्रसाद मौर्य का कोई खास असर कभी नहीं रहा है बल्कि इस मामले में उनके कद के दूसरे स्वजातीय नेताओं पर नजर दौड़ाई जाए तो जन अधिकार पार्टी के मुखिया बाबू सिंह कुशवाहा भारी हैं। उसके बाद उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का नंबर आता है।

जहां तक गाजीपुर में मौर्यवंशीय वोटरों की संख्या की बात है तो सभी सात विधानसभा क्षेत्रों में करीब सवा दो लाख वोटर अनुमानित हैं। वोटर के लिहाज से मौर्यवंशीयों का सबसे बड़ा पैकेट जमानियां में है। उसके बाद जंगीपुर का नंबर आता है। कमोबेश जखनियां और जहूराबाद में भी इनकी आबादी है। सबसे कम सैदपुर और मुहम्मादाबाद में मौर्यवंशीय हैं।

रही बात मौर्यवंशीय नेताओं के गाजीपुर में अपने समाज में प्रभाव की तो स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए कभी उतना आकर्षण नहीं दिखा जितना कि बाबू सिंह कुशवाहा के लिए शुरू से दिखता रहा है। उस वक्त में भी नहीं जब यह दोनों नेता बसपा में हुआ करते थे। तब चुनाव अभियानों में मौर्यवंशीय समाज को रिझाने के लिए सबसे ज्यादा बाबू सिंह कुशवाहा की ही डिमांड रहती थी। शायद यही वजह रही कि बसपा से नाता तोड़ने के बाद 2012 के पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा अपने लिए उन्हें गाजीपुर बुलाई थी। फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में बाबू सिंह कुशवाहा सपा से सटे तो अपनी पत्नी शिवकन्या के लिए गाजीपुर सीट से ही टिकट दिलवाए। हालांकि उस चुनाव में शिवकन्या को कामयाबी नहीं मिली थी लेकिन बाबू सिंह कुशवाहा गाजीपुर से अपना राजनीतिक नाता जोड़े रहे। उनकी पार्टी का हर विधानसभा क्षेत्र में संगठन सक्रिय है और उनमें ज्यादातर नौजवान हैं।

…लेकिन उमाशंकर का भी क्रेज कम नहीं

भले ही बड़े कद के मौर्यवंशीय नेता गाजीपुर में अपने स्वजातीय आधार में खुद के प्रभाव को लेकर दम भरते हों लेकिन पूर्व विधायक उमाशंकर कुशवाहा का भी अपने समाज में कम असर नहीं है। बल्कि एक लिहाज से देखा जाए तो वह अपने समाज के ‘चौधुर’ की भूमिका में दिखते रहते हैं। यह बात दीगर है कि जंगीपुर विधानसभा सीट से उनकी दावेदारी को बसपा खारिज कर दी है जबकि 2002 के विधानसभा चुनाव में बसपा के टिकट पर उमाशंकर कुशवाहा सदर सीट से विधायक चुने गए थे। उसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में बसपा उन्हें गाजीपुर सीट से लड़ाई थी लेकिन वह भाजपा के मनोज सिन्हा से कुछ ही कम वोट पाकर तीसरे स्थान पर रह गए थे। फिर बसपा 2012 के विधानसभा चुनाव में जमानियां सीट से लड़ने का मौका दी लेकिन
उनकी किस्मत साथ नहीं दी थी।

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