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लॉकडाउन में नहीं थमी मौत की रफ्तार, घरेलू हिंसा में इज़ाफा

गाजीपुर (राहुल पांडेय)। लॉकडाउन में भी असमान्य मौत की घटनाएं अपेक्षाकृत कम नहीं हुई। बल्कि इनमें बढ़ोतरी ही दर्ज होती रही। खास यह कि घरेलू हिंसा भी मौत के आकड़े में इज़ाफा करती रही।

इस प्रतिनिधि ने लॉकडाउन की अवधि में असमान्य मौत का आकड़ा स्वास्थ्य विभाग से जुटाया। जहां पोस्टमार्टम के लिए भेजी गई लाशों का रिकॉर्ड है। लॉकडाउन की शुरूआत 24 मार्च से हुई थी और लगातार 30 जून तक चला। इस दौरान फांसी और जहर खाकर खुदकुशी करने वाले 66 लोगों का पोस्टमार्टम हुआ। इनमें अकेले 41 महिलाएं शामिल रहीं। जून में खुदकुशी के सर्वाधिक 27 मामले सामने आए। पोस्टमार्टम हाउस की गतिविधियों पर नजर रखने वालों की मानी जाए तो खुदकुशी के ज्यादातर मामले गृह कलह और घरेलू हिंसा के ही परिणाम रहे। घरेलू हिंसा में लॉकडाउन के चलते आई आर्थिक तंगी और बेरोजगारी का अहम योगदान रहा। पीजी कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. बीडी मिश्र भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। बातचीत में उन्होंने कहा कि लॉकडाउन में आर्थिक तंगी बेरोजगारी की नौवत आई और लोग अवसाद में चले गए। ऊपर से गृहबंदी हो गई। उस दशा में अवसाद और बढ़ता गया। उसका परिणाम गृहकलह, घरेलू हिंसा के रूप में सामने आया।

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वैसे देखा जाए तो लगातार लॉकडाउन के बाद अनलॉक में भी गृहकलह, घरेलूहिंसा में मौत का सिलसिला थमा नहीं है। इसकी पुष्टि इस माह में भी अब तक छह से अधिक खुदकुशी के मामले हो चुके हैं।   हालांकि लॉकडाउन में यातायात लगभग पूर्णत: बंद रहे।

लॉकडाउन के पहले चरण में सड़क हादसे में मौत में अप्रत्याशित कमी आई। इसमें मात्र नौ लोगों की मौत हुई लेकिन चौंकाने वाली बात रही कि मई में सड़क हादसे में 41 मौत दर्ज हुई। इसी तरह जून में यह आकड़ा 31 का रहा। इस वृद्धि के पीछे माना जा सकता है कि पहले चरण के बाद लॉकडाउन में सख्ती कम होती चली गई थी।

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