दुखियारी दंपती को रेलवे ने छोड़ दिया उनके हाल पर

गाजीपुर। रेलवे का भी जवाब नहीं। यात्रियों की मामूली मदद कर सोशल मीडिया पर फोटो तक चेंप कर खुद पीठ थपथपाने में माहिर है लेकिन पीड़ित को आगे की जरूरत पर हाथ खड़ा करने में भी उसे देर नहीं लगती। दरभंगा (बिहार) के प्रवासी मजदूर पप्पू कुमार संग कुछ ऐसा ही हुआ है।
यह भी पढ़ें—वाकई! ‘ऑपरेशन मुख्तार’ में मऊ गए धनंजय
पप्पू कुमार मुंबई से अपनी गर्भवती पत्नी रंजू देवी व दो वर्षीय बेटे के साथ पवन एक्सप्रेस से बीते बुधवार को घर लौट रहा था। उसी बीच सिटी स्टेशन के अधिकारियों को सूचना मिली कि रंजू देवी को तेज प्रसव पीड़ा शूरू हो गई है। उसके बाद सिटी स्टेशन पर एंबुलेंस बुला ली गई। जैसे ही ट्रेन सिटी स्टेशन पर आकर रुकी तत्काल रंजू देवी को आरपीएफ की मदद से उतार कर जिला महिला अस्पताल पहुंचाया गया।

दूर्भाग्यवश प्रसव के साथ ही गर्भस्थ शिशु का दम टूट गया। यह देख सुन रंजू देवी व उसके पति पर जैसे पहाड़ टूट गया हो। किसी तरह वह दोनों खुद को संभाने। उसके बाद पप्पू घर लौटने के लिए ट्रेन के आरक्षित टिकट के प्रयास में जुटा। उसके पास टिकट के पूरेपैसे भी नहीं बचे थे। वह सिटी स्टेशन के अधिकारियों से आग्रह किया लेकिन सभी ने हाथ खड़े कर लिए। उसी क्रम में उसकी मुलाकात युवा समाजसेवी अमितेश सिंह से हुई। उन्होंने रेलवे के वाराणसी मंडल के संबधित अधिकारियों से पीड़ित दंपती को ट्रेन में आरक्षित सीट की व्यवस्था कराने का आग्रह किया। वहां भी कोई सुनवाई नहीं हुई। आखिर में लाचार पप्पू मुंबई में अपने नियोक्ता से फोन पर बात की। नियोक्ता अपने स्तर से किसी तरह 12 जुलाई का आरक्षित टिकट का इंतजाम कराया।रेल अधिकारियों का इस दुखी दंपती के प्रति यह उपेक्षापूर्ण रवैया तब ऐसा रहा जब उन्हें शुरुआत में मदद देकर विभागीय अधिकारियों ने न सिर्फ अपने सोशल मीडिया एकांउट से फोटो सहित खबर पोस्ट कर खुद अपनी पीठ थपथपाई थी बल्कि मीडिया कर्मियों को भी फोन कर कवरेज के लिए सिटी स्टेशन पर बुला लिया था।