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“पहलगाम की वो चीखें अब भी गूंज रही हैं… मैं दोषी हूँ, मैं ज़िम्मेदार हूँ: उपराज्यपाल मनोज सिन्हा”

राजभवन की शांति भंग हो गई। एक आतंकवादी हमला — और सारी मेहनत, विश्वास और उम्मीदें जैसे लहूलुहान हो गईं।

जम्मू /कश्मीर : उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, जो जम्मू-कश्मीर के राजभवन में पाँच साल पूरे कर रहे हैं, उन्होंने TOI की भारती जैन को दिए साक्षात्कार में बताया कि कैसे पहलगाम की खूबसूरत वादियाँ उस दिन चीख पड़ीं, जब मासूम पर्यटकों को बर्बरता से मार डाला गया।

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, जिनके पांच साल के कार्यकाल को स्थायित्व और विकास की मिसाल माना जा रहा था, उन्होंने इस हमले की पूरी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली

“मैं चुप नहीं रह सकता। मैं भाग नहीं सकता।
यह एक सुरक्षा चूक थी, और इसकी ज़िम्मेदारी मेरी है,” – मनोज सिन्हा

पहलगाम के खुले मैदान में जब मौत बरसी, तो उस समय न तो सुरक्षा बलों की तैनाती थी और न कोई स्थायी चौकी।
ये हमला सिर्फ गोलियों का नहीं था, यह कश्मीर की शांति पर हमला था, उस विश्वास पर हमला था जिसे लाखों पर्यटकों ने वहाँ की वादियों में दोबारा खोजा था।

पाकिस्तान की करतूत और सांप्रदायिक जहर

यह हमला एक सुनियोजित पाकिस्तानी साज़िश थी।
मकसद था — दहशत, डर और देश के भीतर फूट डालना
आशंका है कि स्थानीय संलिप्तता भी थी, लेकिन सच्चाई ये है कि जम्मू-कश्मीर अब पहले जैसा नहीं रहा।

“जिन्होंने गोली चलाई, वे पकड़े नहीं गए,
पर जो चुप रहे… वे भी कम गुनहगार नहीं।”

ऑपरेशन सिंदूर — जब भारत ने चेतावनी दी

ऑपरेशन सिंदूर के बाद जम्मू-कश्मीर में हालात बदल चुके थे।
मनोज सिन्हा कहते हैं —

“भारत ने साफ कर दिया है कि अब कोई भी आतंकी हमला युद्ध की कार्यवाही माना जाएगा।
हमने जवाब दिया है, और ऐसा जवाब दिया है कि पाकिस्तान अब पीछे हट चुका है।”

“पहलगाम की लाशें, कश्मीर की आबरू”

पहलगाम के इस हमले ने ना सिर्फ निर्दोष जिंदगियाँ लीं,
बल्कि कश्मीर की साख को भी गहरी चोट दी।
पर राज्य प्रशासन ने हार नहीं मानी —
अमरनाथ यात्रा, बाबा बर्फानी, और सिन्हा के भरोसे ने लोगों को फिर से लौटाया

एक दर्दनाक सच्चाई

  • स्थानीय आतंकी भर्ती अब न्यूनतम है
  • लोग अब आतंकियों के साथ नहीं, शासन के साथ हैं
  • पहले जहाँ डर था, अब वहाँ सिनेमा हॉल, मुहर्रम जुलूस और देर रात प्रचार है
  • कश्मीर बदल रहा है — लेकिन कुछ घाव अभी भी ताज़ा हैं

अंतिम शब्द – एक नेता का आत्मस्वीकृति

“पहलगाम में जो हुआ, वो मेरे शासन में हुआ,
मैं आँखें मूँदकर आगे नहीं बढ़ सकता।
यह मेरा अपराध नहीं, पर मेरी ज़िम्मेदारी है।
और मैं उसे स्वीकार करता हूँ…”


 

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