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नेपाल की भूमि पर भी चीन की गिद्ध दृष्टि

गाजीपुर। इन दिनों चीन की शह पर नाच रहे नेपाल की जमीन को ड्रैगन उसी तरह कब्जाने में जुटा है जिसके लिए वह कुख्यात है। नेपाल सरकार के कृषि मंत्रालय ने कागजातों में भी इस सच्चाई को स्वीकार किया गया है, लेकिन प्रधानमंत्री केपी ओली इस पर आंखें मूदे हुए हैं और भारत के खिलाफ भावनाएं भड़काने में जुटे हैं। नेपाल के कृषि मंत्रालय ने एक डॉक्युमेंट में कहा है कि तिब्बत में चल रहे बड़े रोड डिवेलपमेंट प्रॉजेक्ट से नदियों का रास्ता बदल दिया गया है और चीन ने नेपाल की भूमि कब्जा करके अपनी सीमा को बढ़ा लिया है।

हिन्दुस्तान टाइम्स को मिले दस्तावेजों में कहा गया है कि चीन ने नेपाल के कई जिलों की भूमि पर अतिक्र्मण कर लिया है और नदियों का रुख बदलता रहा तो और अधिक जमीन जीन कब्जा लेगा। नदियों की धारा बदलने से नेपाल सैकड़ों हेक्टेयर जमीन खो देगा। कृषि मंत्रालय ने सरकार को चेताते हुए कहा है, ”इस बात की बहुत संभावना है कि चीन आने वाले समय में यहां सशस्त्र बलों के लिए पोस्ट बना ले।

उत्तर में नेपाल की सीमा चीन से मिलती है। दोनों देशों के बीच पूर्व से पश्चिम तक कई पहाड़ हैं जो दोनों देशों के बीच प्राकृतिक सीमा का काम करते हैं। दोनों देशों के बीच छह चेक पोस्ट हैं, जिनके जरिए व्यापार होता है। सर्वे डिपार्टमेंट ने कहा है कि 11 नदियों के रास्ता बदलने से पहले ही नेपाल 36 हेक्टयर जमीन खो चुका है। ये जमीनें चार जिलों हुमला, रसुआ, सिंधुपालचौक और सनखुवासभा जिले में हैं।

36 हेक्टेयर जमीन पर चीन के कब्जे को लेकर सबसे पहले पिछले साल नेपाल सरकार को रिपोर्ट दी गई थी। लोकल मीडिया में ये खबरें आने के बाद नेपाल में लोग सड़कों पर उतर आए। लेकिन चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की पिछलग्गू माने जानी वाली केपी ओली सरकार ने नक्शा विवाद के जरिए जनता के आक्रोश को भारत की ओर मोड़ने का प्रयास किया है।   

नेपाल ने भारतीय इलाके कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को अपने नक्शे में शामिल कर लिया है। हाल ही में इसके लिए संविधान संशोधन किया गया है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह द्वारा लिपुलेख पास तक 80 किलोमीटर के सड़क के उद्घाटन के बाद केपील ओली सरकार ने इस विवाद को तूल देकर अपने खिलाफ आक्रोश को दबाने की कोशिश की है। 

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