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गोवर्धन पर्वत उठाने की कहानी सुनाने वाले अब मासूमों के बहते खून के सामने क्यों चुप हैं?

दिल्ली / गाजीपुर : कभी कहा गया था कि एक कानी उंगली में इतनी ताकत है कि पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया जाए। यह किस्सा सुनते हुए जनता ने भरोसा कर लिया था कि अब चाहे जितनी भी मुश्किलें आएं, कोई न कोई अपनी उंगली पर पूरा दर्द संभाल लेगा।

लेकिन आज, जब पहलगाम से उठती चीखें पूरे देश का कलेजा चीर रही हैं, जब निर्दोषों का खून मिट्टी में मिल रहा है, तो वही उंगली बेबस नजर आ रही है। वह हाथ जो सुरक्षा का वादा करता था, अब जेब में छिप गया है। वह आवाज जो साहस की मिसाल बन सकती थी, अब घुट कर रह गई है।

देश के कोने-कोने से उठने वाली आहें एक ही सवाल कर रही हैं —
“कहाँ हैं वो जो वादा करते थे कि जब वादी डगमगाएगी, तो वह उसे संभाल लेंगे?”

देश के बुजुर्गों की आंखें नम हैं, माताओं का कलेजा फटा जा रहा है, जवान बेटे-बहनों के चेहरों पर एक अजीब सी खामोशी है। हर आंख में एक ही सवाल तैर रहा है कि जिन पर भरोसा किया था, वे आज हमारे आंसुओं के बीच क्यों खामोश हैं?

सोशल मीडिया पर लोग टूटे हुए शब्दों में अपने जले दिल की बात कह रहे हैं —

  • “गोवर्धन उठाने की उंगली अब दुखती वादी को क्यों नहीं संभाल पाई?”

फेसबुक, एक्स और इंस्टाग्राम पर हर शब्द में पीड़ा झलक रही है। लोग बस पूछ रहे हैं —
“हमने अपना भरोसा सौंपा था… क्या उसका यही हश्र होना था?”

देश रो रहा है। पहलगाम की हवाओं में सिर्फ मातम नहीं है, उसमें टूटी उम्मीदों की सिसकियां भी घुली हैं। और हर दिल चुपचाप यही महसूस कर रहा है कि शायद गोवर्धन उठाने की वो कहानी अब सिर्फ एक अधूरी याद बन कर रह गई है।

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