सगीर साहब! अभी उम्मीद जिंदा है

शिवकुमार राय
समाजवाद सिर्फ जुबान पर नहीं बल्कि जिनकी नसों में खून बनकर दौड़ता था। किसी संगठन के मोहताज नहीं बल्कि जो खुद संगठक थे। जो रिश्ते बनाना ही नहीं बल्कि उसे निभाना भी जानते थे। जिनके दिल में सबके लिए अदब होता। जिनकी मेहमानवाजी हर कोई को अपना मुरीद बना लेती।
…और ऐसे सगीर साहब (सगीर अहमद) हम सबको अलविदा कह गए।
सगीर साहब का इस तरह अचानक जाने की खबर मुझे स्तब्ध कर दी। मुझे भीतर तक हिला गई यह खबर। यूं तो यह ईश्वरीय नियम है। जो आया है, वह जाएगा लेकिन मुझे कचोट रहा है और शायद जीवनभर यह सवाल कचोटता रहेगा कि मैं उनके आखिरी वक्त का गवाह क्यों नहीं बन पाया। उनके आखिरी सफर में दो कदम चलकर उन्हें कंधा क्यों नहीं दे पाया। आखिर इसके जवाब के लिए मैं किसे कोसूं। खुद के नसीब को कि मुआं हालात को।
…खैर, अभी हफ्ते भर पहले की ही तो बात है।
सगीर साहब से फोन पर बात हुई थी। अपनों के लिए वही गर्मजोशी थी। अपनों की खैरियत जानने की वही आकुलता थी और थी अपनों तक पहुंचने की योजना। पहले लखनऊ पहुंचा जाएगा। वहां गोरखपुर से सरदार देवेंदर सिंह आ जाएंगे। फिर राजनाथ शर्मा से मिलने इस बार बाराबंकी चलना है। तब सुखलाल पांडेय के यहां भी हो लिया जाएगा। बभानान (बस्ती) पहुंच कर उनका कॉलेज भी देखा जाएगा।
…पर अब हमें योजना बनाना है।
कि सगीर साहब के लिए कैसे चलना है। गोरखपुर में सरदार देवेंदर सिंह से बात हुई है। बलिया से वीरेंद्र राय, लुटूर राय भी साथ चलने को तैयार हैं। गाजीपुर में रामनाथ ठाकुर भी चलने को उत्सुक हैं। यही कि हम सब उनकी देहरी पर पहुंचकर उन्हें अपना श्रद्धासुमन अर्पित करें। मुझे एक गरज यह भी सुझती है कि कोई सगीर साहब का संदर्भ मिल जाए। जिसमें उनके वंशज हों। नात-रिश्तेदार रहें। उनके और भी हर दिल अजीज की मौजूदगी हो। ताकि हम सब भी उनके संग सगीर साहब की मधुर, सुनहली यादों को और ठीक से बटोर पाएं।
…बस अब सगीर साहब की दर पहुंचने पर।…सगीर साहब हम सबको आप से अभी उम्मीद जिंदा है।…सगीर साहब आपको शत-शत नमन।