गांव में छोटी दुकान की कमाई से बेटे को बना दी साइंटिस्ट
गाजीपुर। अगर हिम्मत और संकल्प हो तो मंजिल तक पहुंचने में गरीबी, शारीरिक अक्षमता कतई आड़े नहीं आती और यह भी कि व्यक्ति के निर्माण में मां का भी अहम योगदान होता है। कुछ ऐसा ही किस्सा मनिहारी ब्लॉक के खतिरपुर गांव के रहने वाले होनहार सत्यप्रताप सिंह का है।
उनका भारत सरकार के केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन (सीएसआईआर) चंडीगढ़ में सोमवार को बतौर वैज्ञानिक नियुक्ति हुई। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि गरीबी, उपेक्षा का पर्याय कही जा सकती है। दुर्भाग्य यह कि बचपन में ही उनके सिर से पिता रामनारायण सिंह का साया उठ गया। ईश्वर ने भी उनके साथ कम बेईमानी नहीं की थी। बचपन से ही वह पैरों से दिव्यांग थे।
पिता के निधन के बाद बड़े भाई भानुप्रताप सिंह भी अपनी पत्नी, संतानों को लेकर कहीं अन्यत्र रहने चले गये। मां हेमवती देवी के सामने समस्या खड़ी हुई कि छोटे पुत्र सत्यप्रताप सिंह की आगे की पढ़ाई की जरूरत कैसे पूरी होगी जबकि हेमवती को पूरा विश्वास था कि अगर अवसर मिलेगा तो उनका होनहार बेटा सत्यप्रताप जरूर एक दिन बहुत बड़े मुकाम पर पहुंचेगा। तब हेमवती देवी ने इसके लिए रास्ता ढूंढ़ा। वह अपने घर में ही किराने की छोटी दुकान खोल लीं। अपनी दुकान के लिए निकटवर्ती बाजार हंसराजपुर के बड़े व्यापारियों से खरीददारी करतीं। उस दुकान से जैसे-तैसे उतनी कमाई होने लगी कि अर्थाभाव में सत्यप्रताप की पढ़ाई रुकने की नौबत नहीं आई। सत्यप्रताप भी अपनी मां के विश्वास डगमगाने नहीं दिए। वह इंटर की पढ़ाई महावीर इंटर कॉलेज मलिकपुरा से पूरी करने के बाद जिला मुख्यालय स्थित पीजी कॉलेज में बीएसी में दाखिला लिए। फिर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एमएससी फिजिक्स की डिग्री लिए। उसके बाद आईआईटी खडगपुर से एमटेक और वहीं से डॉक्टरेट किए। उसी बीच अपनी ढलती उम्र और शारीरिक थकान को देख हेमवती ने सत्यप्रताप की शादी भी कर दी। दांपत्य जीवन के झंझावतों में फंसने के बाद भी सत्यप्रताप अपने लक्ष्य से नहीं डिगे और अब जबकि वह भारत सरकार के प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान में केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन (सीएसआईआर) चंडीगढ़ में वैज्ञानिक होने का श्रेय सिर्फ और सिर्फ अपनी मां हेमावती देवी को दे रहे हैं। उनका कहना है कि अगर संकल्प, समर्पण के साथ परिश्रम किया जाए तो बड़े से बड़े लक्ष्य की प्राप्ति असंभव नहीं है।