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मनुष्यता की मातृभाषा है कविताः प्रो.अवधेश प्रधान

गाजीपुर। माधव कृष्ण और डॉ. शिखा तिवारी की संपादित पुस्तक ‘हिमशिला की देह थे घटते रहे' का लोकार्पण गुरुवार को साहित्यिक, सांस्कृतिक और शिक्षा से जुड़ी बिरादरी के बीच हुआ। यह पुस्तक पूरे चार खंडों में प्रख्यात नवगीतकार डॉ. उमाशंकर तिवारी के व्यक्तित्व और कृतित्व का समग्र बोध कराती है। साथ ही नवगीतों पर विमर्श का अवसर भी देती है।

लोकापर्ण समारोह राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सावित्रीबाई फुले सभागार में में हुआ। इस अवसर पर ‘डॉ. उमाशंकर तिवारी और हिंदी नवगीत' विषयक संगोष्ठी भी हुई। उद्घाटन सत्र में मेजबान महाविद्यालय की प्राचार्य प्रो. सविता भारद्वाज ने कहा कि डॉ. उमाशंकर तिवारी गाजीपुर के महत्वपूर्ण कवि हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा से पूरे हिंदी जगत को चमत्कृत किया। उनके नवगीतों में जनवादी चेतना है। उन्होंने कार्यक्रम के समन्वयक माधव कृष्ण और संयोजक डॉ. शिखा तिवारी की प्रशंसा की और महाविद्यालय के दरवाजे ऐसे अकादमिक आयोजनों के लिए खुले रखने की बात भी कही।

समन्वयक माधव कृष्ण ने उपस्थित विद्वतजनों का स्वागत करते हुए कहा कि बाजारवाद, नशाखोरी, भ्रष्टाचार, वैचारिक अंधता के दौर में भी डॉ. उमाशंकर तिवारी के नवगीत आक्रोश व व्यथा व्यक्त करते हुए आशा की किरण हैं। कविता की पंक्ति-‘हम न रुकेंगे गलियारों में हम न बिकेंगे बाजारों में, बाकी है ईमान अभी भी।’ को उद्धृत करते हुए कहा कि डॉ.उमाशंकर तिवारी के नवगीत मानुषी गरिमा को स्थापित करने के साथ ही समझौतावादी दृष्टिकोण अपनाने से मना भी करते हैं।

उदघाटन सत्र के मुख्य वक्ता प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि मनुष्यता की मातृभाषा कविता है और यह सच है क्योंकि गीत मैंने सर्वप्रथम अपनी मां के मुख से सुना था। डॉ. उमाशंकर तिवारी की कविताएं नवगीत की इसी अवधारणा की पुष्टि करती हैं। वीरगाथा काल के गीतों के बाद कबीर, सूरदास, तुलसीदास ने नवगीत लिखे। उनका कहना था कि अपने समय की दस्तक और पीड़ा को पहचानकर लिखे जाने वाले गीत ही नवगीत हैं और डॉ. उमाशंकर तिवारी के नवगीतों में उनके समय की ध्वनि स्पष्ट रूप से सुनी जा सकती है।

उद्घाटन सत्र का धन्यवाद प्रस्ताव डॉ. शिखा तिवारी ने नवगीतों के पाठ्यक्रम से लुप्त होने पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने डॉ. उमाशंकर तिवारी के सहज व्यक्तित्व और ग्राम्य चेतना का विस्तार से वर्णन करते हुए सभी अतिथियों को धन्यवाद दिया।

तकनीकी सत्र के मुख्य वक्ता प्रो. वशिष्ठ अनूप ने कहा कि उनकी कविता ‘वे लोग जो कंधे हल ढोते खेतों में आंसू बोते हैं/उनका भी हक़ है फसलों पर अब भी मानो तो बेहतर है' जैसी दलित समस्याओँ पर केंद्रित कविता आज तक किसी दलित सरोकारों वाले कवि ने नहीं लिखी। उन्होंने नवगीतों के पाठ्यक्रम से अलग होने पर इसमें सहयोग देने के लिए कहा और कहा कि छंदबद्ध कविताएं और गीत लिखने के लिए प्रतिभा चाहिए। यह प्रतिभा नैसर्गिक होती है, और इसे अभ्यास से उत्पन्न नहीं किया जा सकता। नवगीतों को हाशिए पर रखना अयोग्य लोगों का योग्य कवियों के विरुद्ध सुनियोजित षडयंत्र है।

सत्र के सारस्वत वक्ता प्रो. प्रभाकर सिंह ने कहा कि डॉ उमाशंकर तिवारी के नवगीतों को पढ़ने के लिए साहित्य पढ़ने का शऊर विकसित करना होगा। आजकल साहित्य को आलोचकीय पंक्तियों के लिए वैचारिक कटघरे में खड़ा होकर पढ़ा जा रहा है इससे साहित्य का नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि एक कवि अपने और पराये की संकुचित सीमाओं का अतिक्रमण कर जाता है। यह मनुष्यता के धर्म का साहित्यिक रूपांतरण है।

इस सत्र में महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विकास सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया। छात्रा सौम्या दूबे ने अपना शोधपत्र पढा। महाविद्यालय की प्रवक्ता डॉ. दीप्ति सिंह के निर्देशन में महाविद्यालय की छात्राओं ने डॉ.उमाशंकर के कुछ नवगीतों की संगीतमय प्रस्तुति भी दी।

समारोह में डॉ शिखा तिवारी की लिखित दूसरी पुस्तक ‘लंबी कविता की जमीन' का भी लोकार्पण हुआ और अंत कवि गोष्ठी हुई। उसमें डॉ. कमलेश राय, डॉ वशिष्ठ अनूप, नवगीतकार गणेश गंभीर, शायर मधुर नजमी, डॉ प्रमोद श्रीवास्तव अनंग, छात्रा सौम्या मिश्रा आदि ने अपनी रचनाएं सुनाकर श्रोताओं की वाहवाही लूटी। विभिन्न सत्रों का संचालन डॉ निरंजन यादव, डॉ संतोष कुमार तिवारी और नवगीतकार शुभम श्रीवास्तव ओम ने किया।

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