टिकट नहीं मिलने पर पंकज दूबे ने छोड़ी कांग्रेस, थामे सुभासपा का झंडा

गाजीपुर। वरिष्ठ नेता पंकज दूबे कांग्रेस से नाता तोड़ कर सुभासपा में शामिल हो गए हैं। शनिवार को लखनऊ में सुभासपा के राष्ट्रीय महासचिव डॉ.अरविंद राजभर ने उनका स्वागत किया और प्राथमिक सदस्यता दी। पाला बदलने से पहले तक श्री दूबे प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे हैं।
कांग्रेस से अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले पंकज दूबे आखिर विधानसभा चुनाव के ऐन मौके पर यह कदम क्यों उठाए। आखिर इसकी नौबत क्यों आई। इन सवालों को लेकर ‘आजकल समाचार’उनसे मुखातिब हुआ। वह बोले-कांग्रेस के लिए मैं समर्पित भाव से काम करता रहा। जो भी जिम्मेदारी मिली, उसे पूरी ईमानदारी से निभाया लेकिन बदले में कांग्रेस ने हर मौके पर उनकी अनदेखी की। कांग्रेस के विचार और व्यवहार में फर्क है। यहां तक कि कांग्रेस में जो नीति बनती है, उसका पालन खुद ऊपर के नेता नहीं करते। हां ! नीचे के कार्यकर्ताओं पर नीति, कार्य जरूर थोप दिए जाते हैं। ऊपर के नेता कार्यकर्ताओं की बात सुनना तो दूर मिलना भी मुनासिब नहीं समझते हैं।
वैसे राजनीतिक हलके में यही कहा जा रहा है कि पंकज दूबे का यह कदम टिकट बंटवारे को लेकर नाराजगी का नतीजा है। दरअसल वह कांग्रेस में गाजीपुर सदर सीट से टिकट मांग रहे थे लेकिन उनकी जगह कई दलों से होते हुए आए लौटन राम निषाद को कांग्रेस टिकट थमा दी। उसके बाद से ही पंकज दूबे कांग्रेस से नाखुश थे।
कहा जा रहा है कि मूलतः गाजीपुर के मनिहारी ब्लॉक क्षेत्र के रहने वाले पंकज दूबे सुभासपा में विधानसभा चुनाव लड़ने की उम्मीद लेकर गए हैं। उनकी नजर सपा से समझौते में सुभासपा को जौनपुर में मिलने वाली सीट पर है लेकिन इस संदर्भ में चर्चा पर श्री दूबे ने साफ कहा कि ऐसा कुछ नहीं है। जिस पार्टी में वह दशकों काम किए। वहां उनकी इच्छा का ख्याल नहीं रखा गया तो यह सुभासपा में जाते ही टिकट की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं। यह जरूर है कि अब वह सुभासपा को मजबूत करने में जुटेंगे और सपा की अगुवाई में सुभासपा की सरकार बनवाएंगे। वह सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर से पहली औपचारिक मुलाकात में ही उनके मुरीद हो गए हैं। बताए कि प्रदेश के सबसे बड़े राजनीतिक गठबंधन का हिस्सा होने और अति व्यस्तता के बावजूद श्री राजभर उनसे मिलने के लिए नितांत और पर्याप्त वक्त निकाले।