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वाकई! किंग मेकर बनकर सामने आए हैं शिशुपाल सिंह घूरा

गाजीपुर। शिशुपाल सिंह घूरा ने फिर साबित कर दिया कि सदर ब्लॉक के ‘किंग मेकर’ सिर्फ और सिर्फ वही हैं। इस बार भी चुनाव में उन्हीं का ही सिक्का चला है। उनकी कृपापात्र ममता यादव सदर ब्लॉक प्रमुख चुन ली गई हैं।

घूरा सिंह की उपलब्धि यह कि इस चुनाव में उनकी हैट्रिक लगी है और यह भी कि हर बार उनके कैंडिडेट की जीत का अंतर बढ़ रहा है। सदर ब्लॉक प्रमुख चुनाव की सियासत में पहली बार वह साल 2010 में अवतरित हुए थे और बसपा से जुड़े थे। तब उन्होंने उस पहले प्रयास में ही अपनी पत्नी धऱमशीला सिंह को प्रमुख चुनवा दिया था। धरमशीला सिंह की 27 वोट के फासले से जीत हुई थी। फिर बारी आई साल 2015 में चुनाव की। सदर ब्लॉक प्रमुख का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो चुका था। जाहिर था धरमशीला सिंह के लिए दोबारा चुनाव लड़ने के लिए मौका नहीं था। उसी बीच पूर्व विधायक विजय कुमार अपने बेटे आलोक कुमार को सियासत में उतारने की तैयारी में थे। शायद उन्हें घूरा सिंह की सियासी हैसियत पर एतबार हो चुका था। शायद वही वजह रही कि वह बेटे आलोक को घूरा सिंह को ‘गोद’ दे दिए। नतीजा मनमाफिक आया। आलोक 84 वोट के अंतर से जीत हासिल कर सदर ब्लॉक प्रमुख की कुर्सी पर बैठे।

इस बार चुनाव में सदर ब्लॉक प्रमुख का पद पिछड़ी जाति की महिला के लिए आरक्षित हुआ। तब सपा विधायक डॉ.बीरेंद्र यादव के कारखास प्रॉपर्टी डीलर राजदेव यादव का मन अपनी पत्नी ममता यादव को उस पद पर बैठाने के लिए कुलबुलाने लगा। हालांकि वह चाहते तो अपने विधायक की कृपा से पत्नी को सपा का टिकट दिलवा देते लेकिन शायद उन्हें भी भाजपा में जा चुके घूरा सिंह की सियासी ताकत का अंदाजा था। सो वह पत्नी को घूरा सिंह का आशीर्वाद दिलवाने का फैसला किए। इसके लिए जरूरी था कि पत्नी ममता यादव को भाजपा ज्वाइन कराया जाए। ऐसा ही हुआ। ममता यादव भाजपा कार्यालय पहुंच कर कमल के फूल के छापे वाला दुपट्टा बेहिचक ओढ़ लीं। राजदेव यादव ने क्या इतना बड़ा कदम अपने विधायक यार डॉ.बीरेंद्र यादव की सहमति से उठाया। इसका जवाब नहीं मालूम लेकिन सपा के ही कुछ लोगों का कहना है कि पार्टी विधायक की रजामंदी के बगैर राजदेव यादव ऐसा कर ही नहीं सकते थे।

खैर पूरे जिले में सर्वाधिक वोटों के अंतर से जीत दर्ज करा कर भाजपा के टिकट पर ब्लॉक प्रमुख बनने का गौरव ममता यादव को प्राप्त हुआ। कुल पड़े वैध 108 वोट में उनको पूरे 106 वोट मिले जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी सपा की मोहरा देवी प्रजापति मात्र दो वोट पर रह गईं। यानी उन्हें एक खुद का और दूसरा उनके प्रस्तावक का वोट मिला।

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