हॉकी मैदान का सितारा तेजू सिंह

गाजीपुर (सुजीत सिंह प्रिंस)। सृजनात्मक प्रवृत्ति अन्वेषी होती है। अप्रतिम होती है। अस्तित्ववादी होती है और इस प्रवृत्ति के धनी थे बाबू तेजबहादुर सिंह तेजू। देश के प्रदेशों में पिछड़ा उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश में पिछड़ा गाजीपुर। गाजीपुर में पिछड़ा सैदपुर तहसील और सैदपुर तहसील का पिछड़ा गांव करमपुर। इस गांव में तेजू सिंह ने खेल जगत में हॉकी के लिए जो कृति रची। वह आज विश्वपटल पर प्रतिष्ठा के साथ अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही है।
कहते हैं सृजन के लिए सुविधा का अभाव मायने नहीं रखता। सहयोग का इंतजार नहीं होता। उसके लिए तो बस संकल्प की दृढ़ता चाहिए। धैर्यता चाहिए। इसी दृढ़ता, धैर्यता के साथ तेजू सिंह ने करमपुर में हॉकी की शुरुआत की और सबकुछ अपने सामर्थय से। हॉकी उनके लिए साधन नहीं थी। साधना थी। इस साधना में वह इतना तल्लीन होते चले गए थे कि अपने जीवन काल के उत्तरार्ध में करमपुर दो बार ही छोड़े। एक बार बनारस और दूसरी बार दिल की सर्जरी के लिए दिल्ली लेकिन उनकी तलाशी, तराशी हॉकी प्रतिभाएं आज देश-विदेश में अपनी चमक बिखेर रही हैं। टोक्यो में प्रस्तावित ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम की अग्रिम पंक्ति की अगुवाई करने वाले ललित उपाध्याय तेजू सिंह की ही मेघबरन सिंह हॉकी अकादमी करमपुर से ही निकले नगीने हैं।
तेजू सिंह का अंग्रेजी भाषा से कभी कोई वास्ता नहीं रहा लेकिन देश के प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने अपने खेल के पन्ने पर पूरे सम्मान के साथ उन पर कवर स्टोरी दी है। अखबार के खेल संपादक मिहिर वसावदा ने अपनी इस स्टोरी में टोक्यो ओलंपिक को संदर्भ बनाते हुए भारतीय हॉकी टीम में तेजू सिंह के अप्रतिम योगदान की चर्चा की है। स्टोरी का शीर्षक है हॉकी मैदान का सितारा (फिल्ड हॉकी स्टार)। इसमें उन्होंने भारतीय हॉकी टीम के स्टार खिलाड़ी ललित उपाध्याय और तेजू सिंह के अनुज पूर्व सांसद राधेमोहन सिंह के हवाले से उनके छुए-अनछुए पहलुओं पर विस्तार से रोशनी डाली है।
तेजू सिंह ने 60 के दशक में अपने घर के सामने बंजर जमीन को मैदान के रूप में इस्तेमाल करना शुरू किया था। तब हॉकी स्टिक के नाम पर बांस के छड़ी थी लेकिन आज वह मैदान एस्ट्रोटर्फ है। मेघबरन सिंह अकादमी की ओर से हर खिलाड़ी को हॉकी स्टिक, एक जोड़ी जूते सहित पौष्टिक आहार उपलब्ध कराया जाता है। खिलाड़ियों के लिए खेल के अतिरिक्त पढ़ाई की भी समुचित व्यवस्था है। मैदान में हर रोज करीब 150 खिलाड़ी हॉकी के गुर सिखते हैं।
अफसोस कि अपने प्यारे शिष्य ललित उपाध्याय को टोक्यो ओलंपिक में प्रतिभा को देखने के लिए तेज बहादुर सिंह तेजू अब इस दुनिया में नहीं हैं। 30 अप्रैल को नाशपिटे कोरोना ने असमय ही उन्हें 68 वर्ष की अवस्था में अपना ग्रास बना लिया। प्रदेश की योगी सरकार ने उन्हें खेल जगत का प्रतिष्ठित सम्मान ‘द्रोणाचार्य’ देने की सिफारिश भारत सरकार से की है।