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रेलवे गार्डों की होगी छुट्टी, आयातित तकनीक लेगी जगह

गाजीपुर (सुजीत सिंह प्रिंस)। भारतीय रेल ऐसी तकनीक लागू करने की तैयारी में है जिससे ट्रैन के सबसे पिछले डब्बे में हरी, लाल झंडी लिए बैठे गॉर्ड इतिहास का हिस्सा हो जाएंगे या कहें इनकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। ब्रिटिश काल से ट्रेनों के कुशल संचालन के लिए चली आ रही गॉर्ड की नियुक्ति भी आने वाले दिनों में नही की जाएगी। भारतीय रेल ‘एंड ऑफ ट्रैन टेलीमेट्री' (EOTT) नाम की तकनीक का ड्राई रन कर रही है। अगर यह सफल रहा तो अब आने वाले दिनों में न गॉर्ड का डब्बा दिखेगा न इसमें बैठने वाले गॉर्ड ही।

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इस विदेशी तकनीक का ट्रायल  मालगाड़ियों पर पहले किया जाएगा। भारतीय परिवेश में अगर यह तकनीक बिना किसी खामी के ट्रायल टेस्ट से पास कर जाती है, तो जल्द ही इसको सवारी गाड़ियों में भी इंस्टाल किया जाएगा। इस नई तकनीक की तहत गॉर्ड के डब्बे वाले जगह पर एक मशीन फिट की जाएगी जो सेंसर के जरिए ड्राइवर को संकेत देगी की सभी मानकों के अनुरूप गाड़ी चलने के लिए तैयार है। ऐसे में लोको डाइवर ट्रेन को आगे बढ़ा सकेंगे। यानी नई तकनीक के लागू होने के बाद ड्राइवर को गॉर्ड की हरी झंडी का इंतजार नहीं करना होगा।

भारतीय रेल में इस एडवांस तकनीक के पहले चरण के ट्रायल में पांच  मशीनों को ईस्ट कोस्ट रेलवे जोन में लगाया गया है। अमरीका से आयातित यह मशीनें भारतीय रेल के कार्य प्रणालियों में भारी बदलाव ला देंगी। अब तक ट्रायल के दौरान इन मशीनों ने एरर फ्री परफॉर्मेंस दिया है। इस टेक्निक के व्यापक प्रयोग के लिए वाराणसी के बीएलडब्लू ने दक्षिण अफ्रीका की कंपनी को 250 ऐसी मशीन को इम्पोर्ट आर्डर दिया है। 100 करोड़ की इस योजना के क्रियान्वयन से रेल को अरबों का फायदा होगा। एक आकड़ो के मुताबिक रेलवे आने वाले दिनों में 16 हज़ार गार्ड की सैलरी और पर्क पर आने वाले खर्च में कटौती की नीयत से इस तकनीक को जल्द लागू कर देगी। रेलवे के कमर्शियल विभाग के आंकड़े बताते है कि फिलहाल क़रीब 7000 मालगाड़ियां अलग अलग रूट पर चलती हैं। जबकि रेलवे क़रीब 15 हज़ार मेल एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेनें का भी संचालन करती हैं। ऐसे में आने वाले वक्त में इस तकनीक के व्यापक प्रयोग से कोरोना काल में ट्रेन संचालन बंद होने से हुए घाटे को रेलवे  के लिए आसान हो जाएगा।

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