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`नौशेरा के शेर` की टूटी कब्र की सेना ने कराई मरम्मत, सांसद अफजाल बोले-सेना को मेरा सैल्यूट

गाजीपुर। राजधानी दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी कैंपस में स्थित ‘नौशेरा के शेर’ ब्रिगेडियर उस्मान की टूटी कब्र को संज्ञान में लेते हुए सेना ने 24 घंटे में उसकी मरम्मत करा दी।

सेना के इस काम पर खुशी जताते हुए सांसद गाजीपुर अफजाल अंसारी ने कहा कि अपने ब्रिगेडियर उस्मान की कब्र को लेकर भारतीय फौज की इस संजीदगी के भी वह कायल हो गए हैं और इसके लिए उसे उनका सैल्यूट है।

मालूम हो कि ब्रिगेडियर उस्मान रिश्ते में सांसद गाजीपुर अफजाल अंसारी के नाना लगते थे। चार दिन पहले ब्रिगेडियर उस्मान की कब्र की बदहाली और उसके टूटने की खबर आई थी तो वह काफी व्यथित हो गए थे। कब्र के उस टूटे हिस्से की तस्वीर मंगलवार को साझा करते हुए सांसद गाजीपुर ने `आजकल समाचार` से बातचीत में अफसोस जताते हुए कहा था कि जिस जांबाज फौजी अफसर ने अपने मुल्क की इज्जत, हिफाजत खातिर खुद की कुर्बानी दी, उसकी कब्र की हिफाजत तक करने में वही मुल्क नकारा साबित हुआ है। बताए थे कि उन्होंने इसके लिए जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी दिल्ली के प्रशासन को चिट्ठी भेजी है। उसमें गुजारिश की है कि कब्र की देखभाल की जिम्मेदारी ब्रिगेडियर उस्मान मेमोरियल सोसायटी को सौंप दी जाए। उस सोसयटी की चेयर पर्सन कभी अफजाल अंसारी की मां मरहूम राबिया बेगम थीं और ब्रिगेडियर उस्मान की कब्र जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी कैंपस में है। इस सिलसिले में उन्होंने फौज के अफसरों से भी बात की थी।

उधर सांसद गाजीपुर और अन्य माध्यमों से अपने ब्रिगेडियर उस्मान की कब्र के टूटने की सूचना को संज्ञान में लेते हुए सेना के उच्च पदस्थ अफसरों ने तत्काल ‘हाई-लेवल’ पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी प्रशासन को महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की क्रब की मरम्मत करने को कहा। उन्होंने कहा कि क्रब की देखरेख की जिम्मेदारी यूनिवर्सिटी की है। वह तत्काल उसकी मरम्म कराए। अगर यूनिवर्सिटी मरम्मत नहीं कराई तो यह काम सेना अपने हाथों में खुद लेगी।

बकौल गाजीपुर सांसद, फौज की नौशेरा ब्रिगेड ने बुधवार को कब्र की मरम्मत युद्ध स्तर पर शुरू की और एक दिन में यह काम पूरा कर दी। उसके बाद फौज ने अपने महानायक की इस कब्र पर पुष्पांजलि भी अर्पित की। कब्र की मरम्मत के बाद ब्रिगेड के अफसरों ने उसकी तस्वीर भी उन्हें साझा की।

…और यह थी ब्रिगेडियर उस्मान की शख्शियत  

ब्रिगेडियर उस्मान का जन्म 15 जुलाई 1912 को मऊ जिले के घोसी तहसील क्षेत्र स्थित बीबीपुर गांव में हुआ था। भारत के विभाजन से पहले ब्रिगेडियर उस्मान ब्रिटिश सेना की बलूच रेजीमेंट में थे। देश के विभाजन के बाग बलूच रेजीमेंट पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बन गई लेकिन ब्रिगेडियर उस्मान ने पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बनने से इन्कार कर दिया था। कहा जाता है कि पाकिस्तान के कायदे आजम ने उन्हें अपनी सेना का प्रमुख बनाने तक की पेशकश की थी लेकिन वह भारतीय सेना की डोगरा रेजीमेंट से जुड़ गए थे। बाद में डोगरा रेजीमेंट पैराशूट रेजीमेंट में तब्दील हो गया था। उसी बीच जम्मू-कश्मीर हथियाने के लिए पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया था। उसका जवाब देने के लिए उनकी रेजीमेंट नौशेरा के मोर्चे पर डटी थी। ब्रिगेडियर उस्मान की जांबाजी के आगे पाकिस्तानी सैनिकों के पांव उखड़ गए थे। तब पाकिस्तान की हुकूमत उनके सिर पर 50 हजार रुपये का ईनाम घोषित की। आखिर में उस युद्ध में तीन जुलाई 1948 में वह शहीद हो गए। उसके बाद उनका पार्थिव शरीर दिल्ली लाया गया और पूरे सैनिक सम्मान के साथ जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी कैंपस में उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया गया। उस मौके पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु भी मौजूद थे। बाद में शहीद ब्रिगेडियर उस्मान को भारतीय सेना के दूसरे सबसे बड़े सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। नौशेरा ब्रिगेड में ब्रिगेडियर उस्मान की बहादुरी और युद्ध रणनीति की चर्चा आज भी होती है। उन्हें नौशेरा के शेर कहा जाता है।

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