
डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी गाजीपुर की नई पीढ़ी के लिए भले ही अनजाने हो गए हों लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में अपने अप्रतिम योगदान से वह इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हैं।
डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी का जन्म 25 दिसंबर 1880 को गाजीपुर के यूसुफपुर-मुहम्मदाबाद में हुआ था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाजीपुर के ही जर्मन मिशन स्कूल (अब राजकीय सीटी इंटर कॉलेज) से पूरी की। एमबीबीएस की शिक्षा हैदराबाद के निजाम कॉलेज से प्राप्त की थी। एमएस की प्रवेश परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने के बाद लंदन के एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से डिग्री हासिल की। डॉक्टर के रूप में लंदन के तीन अस्पतालों द चेयरिंग क्रॉस, सेंट पीटर्स हॉस्पिटल, द लॉक हॉस्पिटल में दस वर्ष तक अपनी सेवा भी दिए। द लॉक हॉस्पिटल के रजिस्ट्रार के रूप में काम करने वाले यह इकलौते भारतीय डॉक्टर बने। इनके सम्मान में वहां एक वार्ड का नाम मुख्तार अहमद अंसारी वार्ड आज भी है।
इंग्लैंड में उतना बड़ा पद और प्रतिष्ठा अर्जित करने के बाद भी अपने मुल्क के लिए बेपनाह मोहब्बत उनको भारत खींच लाया। 1910 में वह भारत लौटे और रजवाड़ों के चिकित्सक के रूप में इनकी ख्याति फैलती चली गई। भोपाल, अलवर, रामपुर आदि राजघरानों के चिकित्सकीय सलाहकार बन गए। बावजूद अपने मुल्क के साथ ब्रितानी हुकूमत की ज्यादतियां उन्हें विचलित करने लगीं। वह अपनी शोहरत, दौलत की परवाह न करते हुए जंग-ए-आजादी में कूद पड़े।
1916 के होम रूल आंदोलन में पहली बार उन्होंने हिस्सेदारी की। हालांकि उसके पहले भी वह बाल्कन युद्ध 1912 में तुर्की सेना की मदद के लिए सैनिक अस्पतालों में तुर्की जाकर काम कर चुके थे।
डॉ. अंसारी 1919-1920 में खिलाफत आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई। उसी क्रम में वह महात्मा गांधी के संपर्क में आए। 1921 में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग तथा 1927 में अखिल भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने।
उनका मानना था कि धर्म और राजनीति समाज के अलग-अलग पहलू हैं। आमजन के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार कर ही देश को उन्नति के मार्ग पर बढ़ाया जा सकता है। कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से तत्कालीन ब्रितानी हुकूमत पर हमला करते हुए उन्होंने कहा था कि देश के 60 प्रतिशत राजस्व का उपयोग सैनिक और युद्ध के कार्यों में किया जाता है जबकि देश की अधिसंख्य जनसंख्या कुपोषित, बीमार और अस्वच्छ वातावरण में रहने के लिए बाध्य है। उनके उस कथन से खफा होकर ब्रितानी हुकूमत ने उनके ऊपर अनेक तरह की पाबंदियां लगा दी।
राजनीति में महात्मा गांधी के अलावा तब के हकीम अजमल खान, मोतीलाल नेहरू, मौलाना आजाद और विट्ठल भाई पटेल सरीखे नेताओं के वह अति करीब आ गए।
शिक्षा को सामाजिक बदलाव का हथियार मानने वाले डॉ. अंसारी स्वदेशी गुणवत्ता युक्त शिक्षा तंत्र को मजबूत करने में आजीवन लगे रहे। काशी विद्यापीठ वाराणसी और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, दिल्ली की स्थापना में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। जामिया मिलिया के लिए जब भूमि एवं भवन की आवश्यकता दिल्ली में पड़ी तो उन्होंने करोल बाग स्थित अपनी कोठी और जमीन उसके नाम दान कर दी। कालांतर में इस विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में भी वह अपनी सेवा दिए।
डॉ. अंसारी अपने चिकित्सकीय पेशे में भी काफी हुनरमंद माने जाते थे। उन्होंने अपनी पुस्तक “रीजेनरेशन इन मैन” पशुओं के उत्तकों को मानव शरीर में रोपित करने के संबंध में किए जा रहे प्रयासों का उल्लेखनीय वर्णन करती है। उन्होंने स्वयं 700 से अधिक ऑपरेशन किए, जिसमें बैल, बंदर और भेड़ के अंडकोष मानव में ट्रांसप्लांट किए। इनके शोध पत्र अमेरिकी और जर्मन जनरल्स में छपते थे। उन्होंने पेरिस, वियना, लंदन वगैरह के चिकित्सकों के साथ मिलकर सर्जरी में अनेक प्रयोग किए।
डॉ. अंसारी की अभिरुचि नाट्य मंचन में भी थी। शेक्सपियर से वह बहुत प्रभावित थे। एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में मंचित नाटक में उन्होंने ओथेलो की भूमिका निभाई थी। दस मई 1936 को मसूरी से लौटते हुए इनकी ट्रेन में ही ह्रदय गति रुकने से मृत्यु हो गई थी।
डॉ. अंसारी की पावन स्मृतियों को गाजीपुर ऐसे है संजोए
यूसुफपुर-मुहम्मदाबाद में उनके नाम पर डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी इंटर कॉलेज है। उसका प्रबंधन उन्हीं के परिवार के हाथों में है। सांसद गाजीपुर अफजाल अंसारी उसके प्रबंधक हैं। कॉलेज में हर साल समारोह पूर्वक उनकी जयंती मनाई जाती है। इस साल भी समारोह आयोजित है। इसके अलावा गाजीपुर जल निगम का परिसर डॉ. अंसारी के अनुदानित भूखंड पर ही निर्मित है। महुआबाग-झुन्नुलाल मार्ग एमए अंसारी मार्ग है। जिला अस्पताल का नाम डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी पर है।